४१६ निषेध कहाँ करता है, वह पकड नहीं सकता है। परको जानता ही नहीं है, ऐसा निषेध भाव आता है, उसे स्वयं पकड नहीं सकता है। उसका निषेध भाव नहीं आना चाहिये और उसकी एकत्वबुद्धि नहीं होनी चाहिये। अपने ज्ञाताकी मुख्यता रखकर उसमें परप्रकाशक आता है। परन्तु परप्रकाशक कहते हुए कोई निषेध करता है, कोई उसे खीँचता है। अब, उसमें कैसे सन्धि करनी (वह) अपनेको (करनी पडती है)। इसीलिये गुरुदेव चर्चाकी बातमें पडते ही नहीं थे। वादविवाद जहाँ हो, वहाँसे गुरुदेव निकल जाते थे।
पालीतानासे निकल गये। चर्चा करो। तो वह बोले, चले गये, चले गये। गुरुदेवने कहा, भले चले गये, सात बार चले गये। हमें चर्चा नहीं करनी है। इसलिये गुरुदेव चर्चामें पडते ही नहीं थे। निश्चय-व्यवहारकी सन्धि ही ऐसी है। किसे कहाँ खीँचना वह उसके हृदय-आशय पर आधार रखता है।
वहाँ शांतिप्रसाद साहूने, गजराजजीके घर पर कहा, चर्चा करो। गुरुदेव चर्चामें पडना ही नहीं चाहते थे। वे तो अपने मार्ग पर ही चलते थे। किसे कहाँ कैसे खीँचना वह अपने हाथकी बात है। एक पक्ष बातको खीँच ले, तो यहाँ ऐसी बात हो कि परको नहीं जानता है, ऐसा नहीं है। तो फिर सामनेवाले ऐसे चलते हैं कि वे लोग परको जानता है, परको जानता है, ऐसा कहते हैं। ऐसे लेते हैं। ऐसा होता है।
क्षेत्र भेदके लिये (ऐसा कहते हैं), टूकडे मानते हैं। टूकडे नहीं है, ऐसी अपेक्षा कहते हैं तो ये लोग व्यवहारकी (बात) करते हैं, स्वतंत्रता (नहीं मानते हैं)।
मुमुक्षुः- व्यवहाराभासी हो गये।
समाधानः- हाँ, व्यवहारभासी हो गये। किसीको आशय समझना नहीं है और खींचातानी करनी है। ऐसा है। मुक्तिके मार्गमें निश्चयपूर्वक व्यवहार है। उसमें व्यवहारकी नास्ति नहीं आनी चाहिये और व्यवहारकी पकड भी नहीं होनी चाहिये, ऐसे दोनों समझना चाहिये। व्यवहारको पकडे ... नास्ति भी नहीं आनी चाहिये, तो मुक्तिका मार्ग ही नहीं रहेगा, व्यवहारका निषेध होगा तो। निश्चय-व्यवहारकी सन्धिका ... है। निश्चय- व्यवहारकी सन्धि कैसे करनी? निश्चय-व्यवहारकी सन्धिमें ही उलझ जाते हैं।
गुरुदेवकी निश्चयकी धून चढी थी तो निश्चयसे कहते थे, परन्तु उनका आशय वैसा नहीं था। उनका आशय अन्दर सब सन्धिपूर्वक था। कोई बहुत खीँच लेता तो गुरुदेव उसे कोडे मारते थे। ऐसा था। बहुत खीँच ले तो उन्हें पसन्द नहीं आता था। .. समझना मुश्किल है। बात तो एक ही होती हो। कोई ऐसा कहे कि हम कहते थे वैसा ही कहते हैं। कोई इस ओर खीँचता हो तो ऐसी बात करे तो कोई उस ओर खीँचे तो... लाभके कारण कहते हैं। परन्तु समझना कि निश्चयको मुख्य रखकर व्यवहार