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लगता है, कितना काल! उस प्रकारका जीवन (होता है)। जैसे अभी इस पंचमकालमें इतने आयुष्य है, परन्तु चतुर्थ कालमें बहुत होता है, क्रोड पूर्वका आयुष्य (हो) तो उसे ऐसा ही लगता है कि इसप्रकारका आयुष्य है। उसके शरीरका बंधारण आदि सब वैसा ही होता है।
.. क्रोड सागरोपमके यह छह काल है। क्रोडा-क्रोड चार क्रोड ऐसा कुछ आता है, दस क्रोडा-क्रोड ऐसा कुछ आता है। इस उत्सर्पिणीका गुरुदेवका आये। क्योंकि क्रोडा-क्रोड सागरोपम है न, इसलिये। देवोंका आयुष्य सागरोपमका होता है, क्रोडा- क्रोड नहीं होता। इसलिये उत्सर्पिणी-ऊँचा काल आये उसमें १७० भगवान होते हैं। उस कालमें आये, ऐसा उसका अर्थ निकलता है। १७० तीर्थंकर होते हैं, वे सब बढिया काल होता है उसमें होते हैं। सब जगह भगवान होते हैं। उत्सर्पिणी काल।
विदेहक्षेत्रके जितने खण्ड है, ३२ खण्ड, उन ३२ खण्डमें भगवान (होते हैं)। भरत क्षेत्रमें, ऐरावत क्षेत्रमें, पाँच भरत, पाँच ऐरावत सब जगह भगवान होते हैं। ऐसा काल आये तब सब जगह भगवान होते हैं। यहाँ पंचमकाल है इसलिये ऐसा सब हो गया है। विदेहक्षेत्रमें तो अभी बीस भगवान विचरते हैं। उसके सिवा दूसरे क्षेत्रमें केवलज्ञानी विचरते हैं। वहाँ तो अभी केवलज्ञान है, इसलिये केवलज्ञानी दूसरे क्षेत्रमें विचरते हैं। यहाँ तो केवलज्ञानी या कुछ नहीं है। मुनि भी नहीं दिखाई देते।
मैंने कोई शास्त्र नहीं पढे थे या पुराण नहीं पढे थे। उसके पहले मुझे यह सब आया है। समवसरणकी कैसी रचना पुराणोंमें आती है! मैंने कोई पुराण नहीं पढे थे। उस वक्त तो मूल शास्त्र हाथमें आये थे न। मोक्षमार्ग प्रकाशक, समयसार, प्रवचनसार आदि। ये सब पुराण उस वक्त हाथमें नहीं लिये थे। समवसरणका वर्णन नहीं पढा था।
कुन्दकुन्दचार्य, सीमंधर भगवान तीर्थंकर भगवान, तीर्थंकर होनेवाले हैं, यह सब शुरूआतसे (आता था)। वहाँ थी न इसलिये। समवसरणमें तीर्थंकरका जीव कभीकभार होता है। महावीर भगवान थे तो उनके समवसरणमें श्रेणिक राजाका जीव था। ऋषभदेव भगवानके समयमें उनकी सभामें मरिचीका जीव था। बहुभाग कहीं-कहीं आता है।
जिनेन्द्र प्रतिमा जिन सारखी है। भगवान जब होंगे तब वन्दन करेंगे, वह योग्य है। पूजा-भक्ति करनी वह बराबर है, अभी नहीं, उसका क्या मतलब है? ऐसे वादे करनेका कोई अर्थ है? भगवान सामने पधारते हैं, प्रतिमाके रूपमें। महाभाग्यकी बात कि जिनप्रतिमाके रूपमें गुरुदेवका भाविका रूप देखने मिलता है, महाभाग्यकी बात है। भावि तीर्थंकर होनेवाले हैं। वह अभी वर्तमान प्रतिष्ठित भगवान हमारे सन्मुख आये। ऐसा कुदरतका योग बना। भले विरूद्धता हुयी, परन्तु कुदरतके योगमें तो यह सब बननेवाला