Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

१३६ वह केवलज्ञानको आओ.. आओ... (कहता है)। मतिज्ञान जब आये, मतिज्ञानका अंश प्रगट होता है तब केवलज्ञान अवश्य आता ही है। जिसको स्वानुभूति प्रगट होती है,.... मतिज्ञान परसन्मुख होता था। मति-श्रुत स्वसन्मुख हुआ, स्वानुभूति प्रगट हुयी तो उसको मतिज्ञान प्रगट हुआ। जिसको वह मतिज्ञानका अंश प्रगट हुआ उसे केवलज्ञान अवश्य होता है।

अनादिकालसे उघाड तो है, बादमें जब स्वसन्मुख होता है, तब उसे स्वानुभूति प्रगट होती है। स्वसन्मुख मति-श्रुत (होता है)। विकल्प टूटकर स्वसन्मुख होता है तो निर्विकल्प स्वानुभूति होती है। जिसको स्वानुभूति होती है, (उसको) अवश्य केवलज्ञान होता है। मतिज्ञान अवश्य केवलज्ञानको बुलाता है। उसको तो अवश्य केवलज्ञान आता है। वह अवश्य आता है। मतिज्ञान-श्रुतज्ञान केवलज्ञानको बुलाता है। केवलज्ञानको आना ही पडता है। मतिज्ञान-डोरीको खिँचती है स्वानुभूति तो केवलज्ञान प्रगट हो जाता है।

मुमुक्षुः- आत्मा प्रत्यक्ष ज्ञाता ही है।

समाधानः- प्रत्यक्ष ज्ञाता है। अनादिअनन्त ज्ञाता है, परन्तु ज्ञाताका भान नहीं है। ज्ञायक-ज्ञाता जब प्रगट होता है, ज्ञायकका परिणमन सम्यग्दर्शनमें आंशिक प्रगट होता है, पूर्ण प्रगट होता है केवलज्ञानमें। प्रत्यक्ष ज्ञाता है।

मुमुक्षुः- अतीन्द्रिय ज्ञानमें?

समाधानः- अतीन्द्रिय ज्ञानमें प्रत्यक्ष ज्ञाता ज्ञायकका वेदन होता है। अतीन्द्रिय ज्ञानमें। बादमें पूर्ण अतीन्द्रिय (ज्ञान प्रगट होता है)।

मुमुक्षुः- श्रुतज्ञानसे जो आत्माको जाने और केवलज्ञानसे आत्माको जाने, उसमें क्या फेर है?

समाधानः- श्रुतज्ञानसे जानता है वह स्वानुभूति प्रत्यक्ष है और वह केवलज्ञान प्रत्यक्ष है। मति-श्रुतको कोई अपेक्षासे परोक्ष कहनेमें आता है, परन्तु स्वानुभूति प्रत्यक्ष है। मतिज्ञानमें मनका थोडा अबुद्धिपूर्वक अंश रहता है इसलिये परोक्ष (कहनेमें आता है), परन्तु स्वानुभूति प्रत्यक्ष है। मति-श्रुत प्रत्यक्ष है। केवलज्ञानमें तो मनका अवलम्बन भी नहीं है, वह तो प्रत्यक्ष ज्ञायक है-प्रत्यक्ष ज्ञाता हो गया। प्रत्यक्ष-परोक्षका भेद पडता है। परन्तु मति-श्रुत स्वानुभूति प्रत्यक्ष है।

मुमुक्षुः- माताजी! आप बारंबार कहते हैं कि देव-गुरु-शास्त्रकी समीपता रखे तो अन्दर जानेका अवकाश है। थोडा इसके बारेमें...

समाधानः- देव-गुरु-शास्त्र जिसके हृदयमें रहते हैं, उसकी भावना रहती है कि मुजे देव-गुरु-शास्त्रका सान्निध्य हो। क्योंकि जिसको आत्माकी रुचि होवे उसको ऐसी भी रुचि होती है कि मुजे गुरुका सान्निध्य हो, देवका हो, शास्त्रका भी (सान्निध्य