हो)। उसके श्रवण-मननकी भावना रहती है। फिर संयोग बने, न बने वह बाहरकी बात है, परन्तु उसकी भावना बहुत रहती है कि मुझे सान्निध्य हो। क्योंकि जिसे आत्मा रुचे उसको उसे साधनेवाले पर भी आदर आता है। गुरु साधकदशामें साधते हैं और देव पूर्ण हो गये। इसलिये जिसने इसकी साधना प्रगट करी, उस पर उसको बहुत आदर रहता है। क्योंकि अपनी रुचि है तो अपनेको नहीं होता है, जिसने प्रगट किया उस पर बहुत आदर रहता है। इसलिये ध्येय आत्माका है और देव-गुरु-शास्त्रके सान्निध्यकी भावना रहती है। मैं आत्माको कैसे पहचानूं? जिसने पीछाना हो उस पर आदर आता है। जिसको आत्माकी रुचि होती है (उसको)।
मुमुक्षुः- माताजी! आता है न, "सेवे सदगुरु चरणको तो पावै साक्षात'। माताजी! ऐसी कोई ताकत दो कि सम्यग्दर्शन, केवलज्ञान प्रगट कर सके हम।
समाधानः- "सेवे सदगुरु चरण' चरण (सेवे) लेकिन उपादान अपनेसे प्रगट होता है। निमित्त गुरु होते हैं, उपादान अपना होता है। उपादान प्रगट करे तो उसे निमित्त कहनेमें आता है। उपादान अपनेको (तैयार) करना पडता है। चरण सेवनेकी भावना अपनी होती है कि मैं चेरण सेवन करके मेरे आत्माको कैसे प्रगट करुँ? ऐसे उपादान अपना तैयार करना पडता है।
जो भगवानको जानता है, वह अपने आत्माको जानता है। भगवानके द्रव्य-गुण- पर्यायको जाना, (वह) अपनेको (जानता है)। अपनेका जानता है, वह भगवानको जानता है। उसे भगवानका कैसा द्रव्य है, गुण है, पर्याय है अपने उपादानसे (जानता है), निमित्तसे इसमें भगवान होते हैं। ऐसा निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। भगवानको जानता है वह आत्माको जानता है, आत्माको जानता है वह भगवानको जानता है। ऐसा निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। उपादान अपना और निमित्त देव-गुरु होते हैं।
मुमुक्षुः- माताजी! श्रुतज्ञान द्वारा आत्माको जाने या अरिहंतके द्रव्य-गुण-पर्यायको जाने? उसमें दोनों बराबर युक्तिसंगत है।
समाधानः- श्रुतज्ञान द्वारा..?
मुमुक्षुः- श्रुतज्ञान द्वारा आत्माको जाने या अरिहंतक भगवानके द्रव्य-गुण-पर्यायको जाने, तो यही अलौकिक युक्ति स्वसंवेदनज्ञान प्राप्त कराती है?
समाधानः- उसमें आ जाता है। जिसने भगवानके द्रव्य-गुण-पर्यायको जाना उसमें श्रुतज्ञान भी साथमें आ जाता है। भगवानके द्रव्य-गुण-पर्याय जाने, उसमें श्रुत अपने आपसे अपने भीतरमें श्रुतज्ञान प्रगट होता है। भगवानके द्रव्य-गुण-पर्यायको जान या श्रुतज्ञान द्वारा जाने, दोनों साथमें होते हैं। उपादान अपना अन्दरमें होता है और भगवानका द्रव्य-गुण-पर्याय (जानना) सब साथमें होता है। श्रुतज्ञानसे केवली जाने, वह ज्ञान द्वारा