Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 862 of 1906

 

ट्रेक-
ट्रेक-१३७

१३७ है। भले उसे प्रत्यक्ष केवलज्ञानी हो वैसा नहीं है, परन्तु उसके वेदनमें आता है। देखनेवाला स्वयं है। ये आँख कुछ देखती नहीं। देखनेका गुण ही चैतन्यका है। आँख तो जड है। चैतन्य चला जाता है तो आँख कहाँ देखती है? इसलिये देखनेवाला चैतन्य है, जाननेवाला चैतन्य है। जाननेवाला स्वयं है, देखनेवाला स्वयं है। ज्ञायक स्वयं जाननेवाला जो-जो भाव हों, उन सबको जाननेवाला अन्दर है। विभाव एकके बाद एक सब विकल्प चले जाय तो भी जाननेवाला ऐसे ही खडा है। बचपनसे लेकर अभी तक क्या-क्या हुआ, सब ज्ञान जानता है। विकल्प तो चले गये हैं, कार्य चले गये तो बी जाननेवाला तो वैसाका वैसा है। जाननेवाला और देखनेवाला वह स्वयं गुणवाला है, जानने-देखनेवाला।

आनन्दगुण है, वह बाहरसे आनन्द मानता है, वह कल्पित है। लेकिन विकल्प टूट जाय, आकुलता टूटकर जो निर्विकल्प दशा आये उसे स्वानुभूतिमें जो आनन्दगुण वेदनमें आता है, उसके साथ उसके अनन्त गुणोंका भावका भासन होता है।

मुमुक्षुः- संचेतता है ऐसा जो अपने कहते हैं, स्वयं अपनेआपको संचेतता है, वह भी एक गुणमेंसे होता है?

समाधानः- स्वयं स्वयंको संचेतता है, वह भी एक जातका गुण है, एक जातका ... है। स्वयं स्वयंको चेतता अर्थात स्वयंको चेतता है, स्वयं स्वयंको जानता है। संचेतना अर्थात जानना। उसमें चेतनता है। जडता नहीं है। विकल्प टूट गये इसलिये शून्य नहीं हो जाता। विकल्प उसके चले गये इसलिये उसका जानना चला नहीं जाता। विकल्पको जाननेवाला, जो विकल्प आये उसे जाननेवाला, उसे विकल्प छूट गये इसलिये वह शून्य नहीं हो जाता। जाननेवाला खडा रहता है। वह जानता है, स्वयं स्वयंको जानता है। स्वयं स्वयंको जानता है, स्वयं स्वयंको देखता है, स्वयं स्वयंके आनन्दका अनुभव करता है, स्वयं स्वयंमें लीनता करता है। अपने अनन्त गुणका भावका भासन होता है।

मुमुक्षुः- अर्थात भिन्न-भिन्न गुणोंका भी उस वक्त ख्याल आ जाता है।

समाधानः- हाँ, ख्याल आ जाता है। ... अनुपम है, लौकिक अनुभूति है, उससे अलौकिक अनुभूति है। चैतन्य अनुभूति। स्वतःसिद्ध चैतन्य है। उसे किसीने बनाया नहीं है, परन्तु स्वयं जाननेवाला, स्वयं देखनेवाला, स्वयं आनन्दरूप, स्वयं अनन्त गुण और अनन्त शक्तिओंसे भरा है। विकल्प टूट गये इसलिये अकेला स्वयं हो गया इसलिये स्वयंको विशेष अपूर्व निर्विकल्प अनुभव होता है।

मुमुक्षुः- ... और जब परप्रकाशक होता है, तब विकल्प परमें जाता है कि नहीं?

समाधानः- फिर बाहर आये तो भी, स्वानुभूतिके बाद बाहर आये तो उसे भेदज्ञानकी धारा खडी रहती है। उपयोग बाहर जाय तो भी मैं ज्ञायक जाननेवाला हूँ, ये विकल्प