Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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... उसका अंश, सम्यक होता है तब स्वानुभूतिमें आंशिक दशा प्रगट होती है। स्वानुभूति प्रगट होती है तब मुक्तिका मार्ग शुरू होता है। वह कैसे हो? वह करने जैसा है। स्वानुभूतिका मार्ग गुरुदेवने बताया है, उस मार्गकी ओर चले जाना। स्वानुभूति, चैतन्य तत्त्व भिन्न ज्ञायक है, शरीर तत्त्व भिन्न है, विभावपर्याय स्वयंका स्वभाव नहीं है। उसका ज्ञान, उसकी श्रद्धा, उसकी लीनता स्वानुभूति प्रगट करनेसे उसीमेंसे केवलज्ञान प्रगट होता है। केवलज्ञान कहीं बाहरसे नहीं आता है। अंतर आत्मामेंसे प्रगट होता है। स्वानुभूतिकी दशा बढते-बढते केवलज्ञानकी प्राप्ति होती है। और सत्य वही है, जीवनका कर्तव्य ही वह है-स्वानुभूति प्रगट करना।

स्वानुभूतिका दीपक प्रगट हो तो पूर्णता प्रगट हो जाय। केवलज्ञान सूर्य है और यह एक चैतन्य(की) स्वानुभूतिका अंश है, वह प्रगट करने जैसा है। भेदज्ञानकी धारा प्रगट करनेसे स्वानुभूति प्रगट होती है। विकल्प टूटकर निर्विकल्प दशा कैसे प्रगट हो, उसका पुरुषार्थ, उसका प्रयत्न, उसका विचार, मंथन, लगनी सब करने जैसा है।

गुरुदेवने मार्ग बताया है। देव-गुरु-शास्त्र सब कहते हैं। देव-गुरुने तो वह प्राप्त किया, देवने पूर्णता की। गुरु साधकदशामें विशेष आगे बढते हैं। स्वयंको वह करना है। देव-गुरु-शास्त्र बताते हैं। जैसे भगवान हैं, वैसा अपना स्वभाव है। भगवानके द्रव्य- गुण-पर्याय जाने, वह स्वयंको जानता है। इसलिये भगवानको जाने। स्वयं कैसे पहचाना जाय? ऐसा स्वयंकी ओर ध्येय रखने जैसा है। स्वयं कौन? चैतन्यद्रव्य, उसके गुण, उसकी स्वभावपर्याय कैसे प्राप्त हो? वह सब यथार्थ ज्ञान करने जैसा है। भगवानको पहचाने वह स्वयंको पहचाने, स्वयंको पहचाने वह भगवानको पहचाने। ऐसा निमित्त- उपादानका सम्बन्ध है। पुरुषार्थ करे, अन्दर दृष्टि करे तो स्वयंमेसे आता है, कहीं बाहरसे नहीं आता है। चैतन्यमें सब स्वभाव भरा है, उसमेंसे प्राप्त होता है। जो है उसमेंसे प्रगट होता है।

मुमुक्षुः- कैसे पहचान हो?

समाधानः- कैसे पहचान हो? स्वयं स्वभावको पहचाने कि यह ज्ञायक स्वभाव सो मैं हूँ और यह मैं नहीं हूँ। यह आकुलतालक्षण है। विभावका लक्षण आकुलता है और ज्ञायकका लक्षण जाननेका लक्षण है। लक्षण द्वारा पहचाने कि यह लक्षण चैतन्यका और यह लक्षण विभावका है। यह जाननेका लक्षण और यह विभाव भिन्न है। ज्ञायक लक्षण पूरा चैतन्य द्रव्य ज्ञायकतासे भरा है और (विभाव) आकुलतासे भरा है। दोनोंको भिन्न करे। लक्षण द्वारा पहचाने। लक्षण द्वारा लक्ष्यको पहचान ले। लक्षण द्वारा पहचाना जाता है। उसके स्वभाव द्वारा पहचाना जाता है।

अंतरमें जो सब विकल्प आये उसे जाननेवाला भिन्न है। जाननतत्त्व पूरा भिन्न है।