१४अमृत वाणी (भाग-४)
मुमुक्षुः- स्वयं ही स्वयंको समझाता है, स्वयं ही अपना सच्चा गुरु है, यह तो महाराज साहबने डंकेकी चोट पर कहा है, परन्तु बाहरमें व्यवहारसे गुरु होते तो हैं न!
समाधानः- देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा रखकर अपनी महिमा करके पुरुषार्थ करे तो होता है। बहुत सुना है, आपको क्या कहना? गुरुने बहुत उपदेश दिया है। सब समझाया है। गुरुने सब समझाया है।
मुमुक्षुः- अल्प बुद्धिवालेको बारंबार सुननेका मन होता है। मुमुक्षुः- सिर्फ समझाया है उतना नहीं, उनकी तो अनहद कृपा थी। समाधानः- कृपा कितनी थी! मुमुक्षुः- भाई क्या कहते हैं? कुछ भी हो तो भाई क्या कहते हैं?
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!