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समाधानः- ... मन्दिरमें दर्शन करते हो, परन्तु किसीका ध्यान .. वह प्रगट हो वह यथार्थ है। जैसा भगवानने किया। मुनिओं, गुरु सब। गुरुदेवने साधना की, सब मंगल-मंगल है। वह सब मंगलता स्वयंने प्रगट की। चैतन्य पूरा मंगलतासे भरा है, उसकी मंगलरूप पर्यायें प्रगट होती है। ... पूर्णता पर्यंत उसकी मंगलता छा जाय तो अन्दरकी मंगलता ...
देव-गुरु-शास्त्र मंगल हैं। वह मंगलता कोई अलग प्रकारकी होती है। वैसा आत्मा मंगल है। मंगलता, आत्माकी मंगलता दिखा दी है। उपादान-निमित्तका सम्बन्ध है। ... उसका साधन आदि सब मंगल है। द्रव्य तो अलौकिक अनादिअनन्त मंगल है। ... मंगल। तीर्थंकरका द्रव्य इसलिये विशेष मंगल। मंगलमूर्ति ही थे गुरुदेव।
... देव-गुरु-शास्त्र सुप्रभात है। वही यथार्थ प्रभात है। जैनशासनमें गुरुदेव प्रभातस्वरूप सूर्य थे। जैनशासनमें देव-गुरु सुप्रभात (हैं)। शासनमें सुप्रभात ऊगी थी। गुरुदेव सुप्रभात (थे), शासनमें सुप्रभात (थे)। गुरुदेव बताये वह करनेका है। दीपक प्रगटाते हैं। चैतन्यका दीपक अंतरमें प्रगट करना। अंतरमें दीपक प्रगट करे। पर्याय मंगलरूप, पर्यायरूपी दीपक है वह प्रगट करने जैसा है, मंगलतासे। चैतन्य पूरा सिद्ध भगवानस्वरूप है वह तो। सब दीपक प्रगट करते हैं। ... कैसे हो, वह करने जैसा है।
... अनुभूति हो वह कोई कहनेकी बात है? स्वानुभूति कोई वचनमें तो आ सकती नहीं, वह तो कोई अपूर्व चीज है। जो दृष्टिमें दिखता है वह अलग है और आत्माका स्वानुभव अर्थात आत्माका अंतरमेंसे आनन्द, ज्ञान आदि अनन्त गुण जो आत्मामें भरे हैं, वह तो स्वयं उसमें दृष्टि करे, उसका ज्ञान करे, उसमें लीनता करे तो प्रगट होता है। विकल्प टूटे, आकुलता जो हो रही है, विकल्पकी आकुलता टूटकर जो स्वानुभूति (हो), विकल्प टूटकर निर्विकल्प हो, वह स्वानुभूति उसके वेदनमें आती है। जगतसे भिन्न जात्यांतर है। जगतके कोई पदार्थके साथ उसका मेल नहीं है। वह तो अनुपम है। उसे कोई उपमा लागू नहीं पडती।
मुमुक्षुः- .. कैसे समझमें आये कि अनुभव हुआ है? इस प्रकारका है। ऐसा कोई ... उसका वेदन कैसा हो? ऐसा अनुभव हुआ... आप समझाइये।