समाधानः- वेदन तो... बहुत लोग ध्यानमें रहते हैं उसे विकल्प शान्त हो और वेदन हो, वह नहीं। ये तो विकल्प टूटकर जो स्वानुभूति हो उसका आत्मा ही उसे कह दे कि यही मुक्तिका मार्ग है और यही आत्माकी स्वानुभूति है। उसका आत्मा ही उसे अन्दरसे यथार्थ ज्ञान और यथार्थ अनुभूति होती है। बाकी बहुत लोग ध्यान करे, विकल्प मन्द करे और अन्दरमें आकुलता सूक्ष्म भरी हो, परन्तु विकल्प टूटा न हो तो वह कोई स्वानुभूति नहीं है। विकल्प टूटकर भेदज्ञानकी धारा हो कि मैं ज्ञायक हूँ, ज्ञाता हूँ, मेरा स्वभाव भिन्न (है), ये विकल्पकी झाल है वह मैं नहीं हूँ, वह तो आकुलतारूप है। उसकी कर्तृत्वबुद्धि छूटकर जो ज्ञायककी (अनुभूति हो), फिर उसे अल्प-अल्प विकल्प होते हैं, परन्तु वह विकल्प मेरा स्वभाव नहीं है। उसमें भेदज्ञान करके जो उसे उग्रता हो, उसमें विकल्प टूटकर जो स्वानुभूति हो वह कोई अलग होती है। उसका आत्मा ही यथार्थ कह देता है कि यह स्वानुभूति है और यही आत्माका वेदन है।
मुमुक्षुः- आनन्द और सुखसे ज्ञात हो।
समाधानः- आनन्द जगतसे कोई अलग (अनुभवमें आता है)। अभी तक जो वेदनमें आया है उससे अलग जातका आनन्द है। और जो आत्मामेंसे प्रगट होता आनन्द है। उसका मूल अस्तित्व आत्माका है। चैतन्यतासे भरा आत्मा है। उसमें आनन्द है, ज्ञान है, आदि अनन्त गुण हैं। वह आनन्द और सुख कोई अपूर्व उसे प्रगट होता है। भेदज्ञानकी धारा प्रगट करे, ऐसा पुरुषार्थ करे, तत्त्व विचार करे, देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा करे, अंतर मेरा ज्ञायक आत्मा मुझे कैसे पहचानमें आये? ऐसे ज्ञायकका लक्ष्य करे। बारंबार अभ्यास करे तो वह प्रगट हो सके ऐसा है।
अमुक जातकी पात्रता तैयार हो तो वह स्वानुभूति प्रगट होती है। बाहर कहीं सुख न लगे, चैन न पडे, विकल्पमें आकुलता लगे। ज्ञायक लक्षण आत्माका है उसे स्वयं गहराईमें जाकर ग्रहण करे। मात्र बुद्धिसे नहीं परन्तु उस तत्त्वमेंसे उस वस्तुको पहचाने-चेतनको, तो यथार्थ स्वानुभूति हो।
मुमुक्षुः- अन्दर जानेके लिये भेदज्ञान करनेकी जरूरत है?
समाधानः- हाँ, भेदज्ञान करनेकी जरूरत है।
मुमुक्षुः- अन्दर जानेके लिये अनुभव करनेके लिये भेदज्ञानसे भिन्न तो करना पडेगा।
समाधानः- भेदज्ञान करना। आत्माको लक्षणसे पहचान ले कि मैं ये जाननेवाला ज्ञायक हूँ। ये सब जो जाननेमें आता है वह आकुलतारूप है, वह मेरा स्वरूप नहीं है। मेरा स्वरूप तो शान्ति, आनन्द, ज्ञायकता जाननेवाला मैं, ऐसे स्वयंको पहचानकर उसका भेदज्ञान (करे)। क्षण-क्षणमें भेदज्ञानकी धारा प्रगट हो, उसकी उग्रता हो तो