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भगवानके चरण इस भरतक्षेत्रमें हैं, महावीर भगवानको हुए इतने ही साल हुए हैं। इसलिये यह सब बनता है। नहीं तो इस पंचमकालमें ऐसा बनना बहुत मुश्किल है।
उस वक्त कैसी नवीनता हुई होगी कि यहाँके आचार्य विदेहक्षेत्रमें जाकर वाणी सुनकर आये। साक्षात, साक्षात भगवानके दर्शन करके आये। गुरुदेव कहते थे, विदेहक्षेत्रकी यात्रा करके आये। ... जोरदार। मानो साक्षात तीर्थंकर जैसी ही वाणी बरसायी! बरसों तक। यह महाभाग्यकी बात है। तीर्थंकर होऊँगा, इसलिये ऐसा कहते थे। उनके जैसा वर्तमानमें कोई दिखता है? उनकी वाणी, दिदार आदि सब कुछ अलग ही था।
प्रतिमाजी विराजमान करनेका काल आया वह भी कुछ अलग ही है। प्रतिमाजी, ऐसे निकृष्ट कालमें, इतने विरूद्ध माहोलमें प्रतिमा विराजमान करनेका काल (आया)। वह भी जैसा बनना होता है, कुदरके घरमें जैसा बनना होता है, वह बना है। वह कैसा काल आया, ऐसे पंचमकालमें।
गुरुदेवने प्रसिद्ध किया, दिगम्बर मार्ग सच्चा है। परन्तु उसमें संप्रदाय वाले इसप्रकार घुस जाते हैं।
मुमुक्षुः- वचनामृत मैंने पढे, जो महत्त्वपूर्ण था उसके नीचे लकीर की। बादमें फिरसे पढा। फिरसे लकीर की, तीसरी बार पढा तो एक भी लकीर करनी हो तो एक भी अक्षर बचा नहीं था। ऐसा पत्र उन्होंने लिखा था।