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मुमुक्षुः- ... गुरुदेवके आशीर्वाद और आपके आशीर्वाद जबरजस्त! जामनगरमें अपूर्व भगवान सूर्यकीर्तिनाथ भगवानकी हमारे यहाँ स्थापना हुई, उसका अभूतपूर्व उत्साह, भक्तिभाव पूरे संघका, एक-एक मुमुक्षुका। और जो आनन्द और उल्लास था, वह पूरे शहरमें प्रवर्तता था। ऐसा ही लगता था कि मानो वास्तविक रूपसे अपने यहाँ तीर्थंकरकी स्थापना हो रही है। पूरे शहरमें। जहाँ-जहाँ रथयात्रा गयी, वहाँ अपने जिनमन्दिरसे लेकर हर जगह लोग नाचते थे, गाते थे। सूर्यकीर्ति भगवानकी जय जयकार बुलाते थे। माताजीके आशीर्वाद हमारे पर बहुत हैं। आपके आशीर्वाद हमें प्राप्त हुए। सब मुमुक्षु नाचे। हमें आशीर्वाद प्राप्त हुए।
समाधानः- गुरुदेवका प्रताप वर्तता है। गुरुदेव पर सबकी भक्ति और गुरुदेवका प्रताप वर्तता है।
मुमुक्षुः- जबरजस्त प्रताप।
समाधानः- नहीं तो होना मुश्किल था, उसमेंसे कैसे हो गया! सब कहते थे, कैसे होगा? कैसे होगा? परन्तु ऐसा योग आ गया कि हो गया।
मुमुक्षुः- हमारे यहाँ स्थापना हुई और तीर्थंकरकी स्थापना हुई, वैसा उत्साह।
समाधानः- मानो साक्षात भगवान तीर्थंकर (पधारे)!
मुमुक्षुः- हमारे अहोभाग्य कि आपके आशीर्वादसे यह कार्य हुआ।
समाधानः- मैं कहाँ कुछ कहती हूँ।
मुमुक्षुः- माताजी! लेकिन हमको ऐसा लाभ मिला तो..
समाधानः- कल सब प्रतिष्ठा करके आये तब बोलते थे।
मुमुक्षुः- माताजी! गुरुदेव ना-ना कहते थे, फिर थोडा-थोडा बोलते भी थे।
समाधानः- इस जगतमें भगवान सर्वोत्कृष्ट है। तीर्थंकरदेव ही सर्वोत्कृष्ट है। ये कुदरत, रत्नके शाश्वत प्रतिमा जगतमें होती हैं। जड परमाणु भी भगवान (की) प्रतिमा, जिनप्रतिमाम रूप परिणमित हो जाते हैं। कुदरत ऐसा कहती है कि जगतमें सर्वोत्कृष्ट जिनेन्द्रदेव हैं। जिनेन्द्रदेवकी प्रतिमा शाश्वत होती है। अपने तो प्रतिमा स्थापित करते हैं। कुदरत भगवानकी महिमा कर रही है। मनुष्य तो करे, उसमें (क्या आश्चर्य)? कुदरत