शाश्वत प्रतिमाओंकी महिमा बोल रही है।
शास्त्रमें आता है न? जिन प्रतिमा जिन सारखी। जिन प्रतिमा और जिनेन्द्र देव दोनों स्थापना निक्षेपमें समान ही होती है। उन्हें भाव होते हैं। जिनेन्द्र प्रतिमा और जिनेश्वर देव, उसमें भेद नहीं देखते।
वे स्वयं ही कहते थे कि मैं तीर्थंकर होने वाला हूँ। उनका हृदय कहता था। स्थापना करनेमें सबके भाव थे, तब शुरूआत हुई। सबने जाहिर किया। मैं तो कहीं भी बीचमें नहीं थी। फिर मुझे मालूम हुआ, तब सब लोगोंने जाहिर किया। वे तो विदेहक्षेत्रसे आये हैं। गुरुदेव स्वयं तीर्थंकरका द्रव्य है, ऐसा उनका हृदय बोलता था। बाकी विदेहक्षेत्रसे आये हैं। विदेहक्षेत्रमें गुरुदेव राजकुमार थे। भगवानकी वाणीमें आया है कि ये राजकुमार भविष्यमें तीर्थंकर होनेवाले हैं।
मुमुक्षुः- माताजी गणधर हैं। हम तो...
समाधानः- वह बात तो अलग है, बाकी तीर्थंकर देव जो जगतमें सर्वोत्कृष्ट होते हैं। कुदरत रत्नमय प्रतिमारूप जिनबिंब, जिनप्रतिमा, तीर्थंकरके प्रतिमारूप कुदरत परिणमती है। तीर्थंकरका द्रव्य कोई अलौकिक होता है। गुरुदेव तीर्थंकर तो अब होंगे, लेकिन उनकी वाणी अभी तीर्थंकर जैसी ही थी। उनका प्रभाव वैसा था, सबकुछ ऐसा था।
मुमुक्षुः- वाणी आनेपर तो भगवान ही दिखे।
समाधानः- भगवानने कहा कि, यह राजकुमार भविष्यमें तीर्थंकर होंगे। समवसरणमें सबको आनन्द व्याप्त हो गया। ये राजकुमार! सबको राजकुमारकी महिमा लग रही थी। वह कोई गुप्त बात नहीं थी। समवसरणमें उपस्थित सभी जीवोंने सुना है। सब देव, देवी, मनुष्य, राजा, रानी, मुनि आदि सब, भगवानके समवसरणमें तो कितने जीव होते हैं, लाख्खों, सबने सुना है।
गुरुदेवके नगरमें भी राजकुमार, राजकुमार ऐसे महिमा थी। राजकुमारका जीव तीर्थंकर होनेवाला है। महाभाग्य कि तीर्थंकरका द्रव्य इस भरतक्षेत्रमें गुरुदेवका जन्म हुआ और उनकी वाणी सुनी। उनका सान्निध्य प्राप्त हुआ, यह महाभाग्यकी बात है। किसीने नहीं कहा था, गुरुदेवने नहीं कहा था। (संवत) १९९३में, कितने बरसों पहले हीराभाईके बंगलेमें गुरुदेव थे तब कुछ मालूम नहीं था कि गुरुदेव स्वयं अन्दर तीर्थंकर हूँ, ऐसा मान रहे हैं अथवा उनको ऐसा आभास होता है कि मैं तीर्थंकर हूँ। तीर्थंकर होनेवाला हूँ, ऐसा नहीं, परन्तु तीर्थंकर हूँ ऐसा ही उनको अन्दर भास होता था। गुरुदेव बाहर बोलते नहीं थे, किसीको कुछ नहीं कहते थे।
मुझे ऐसा लगता था कि गुरुदेव तो महापुरुष हैैं, ऐसा लगे। लेकिन ये तीर्थंकर