Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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१९
ट्रेक-

१३८ होता है। प्रमाद करे तो नहीं होता है, आकुलता करे तो नहीं होता है। धैर्यसे, शान्तिसे स्वभावको पहचानकर यथार्थरूपसे विचार करे तो होता है। स्वयं पुरुषार्थ करे। अपने स्वभावको ग्रहण करे तो होता है।

मुमुक्षुः- संतोंके आशीर्वादसे हो तो होता है।

समाधानः- संतोंके आशीर्वादसे स्वयं उपादान तैयार करे तो आशीर्वाद आशीर्वादरूप हो। अकेला निमित्त-पर पदार्थ कुछ कर नहीं देता। स्वयं पुरुषार्थ करे तो आशीर्वाद उसे लागू पडता है।

मुमुक्षुः- वास्तवमें अनेक जीवोंका तारते हैं।

समाधानः- तारते हैं... पुरुषार्थसे तिरता है। तीर्थंकर भगवानने तारा,.. भगवानकी वाणीमें उतना प्रबल निमित्तत्व है कि भगवानकी वाणी छूटे तो सब तिर जाय। ऐसा निमित्त है। परन्तु वस्तु स्वभाव ऐसा है कि जिसका उपादान तैयार हो, उसे निमित्त निमित्तरूप (होता) है। जिसका उपादान तैयार न हो उसे निमित्त निमित्तरूप नहीं होता। उपादान तैयार हो उसे ही निमित्त होता है। पुरुषार्थ करे उसे होता है। कोई किसीको तारता हो तो अनन्त तीर्थंकर मोक्षमें गये तो सबको क्यों नहीं तारा?

मुमुक्षुः- शास्त्रज्ञान..

समाधानः- प्रयोजनभूत तत्त्वको पहचाननेके लिये कि मैं चैतन्य भिन्न हूँ। यह भिन्न है। अतः प्रयोजनभूत (जानना)। ज्यादा जानना और ज्यादा धोखना, ऐसा प्रयोजन नहीं है। तत्त्वका विचार करना। मूल प्रयोजनभूत चैतन्यतत्त्वकी पहचान हो उतनी जरूरत है। परन्तु उससे ज्यादा जरूरत... स्वयं ज्यादा अभ्यास करे तो उसमें कोई नुकसान नहीं है, परन्तु वह ऐसा मानता हो कि इसका अभ्यास करनेसे ही होगा, ऐसा नहीं है। अंतर दृष्टि करे तो हो। शास्त्र अभ्यास करे परन्तु अंदर दृष्टि न करे तो नहीं होता है। दृष्टि स्वयंमें करनी चाहिये।

मुमुक्षुः- बात तो यहीं पर आती है, घुमफिर यहीं आती है।

समाधानः- घुमफिर कर स्वयंको ही करना है, दूसरा कोई नहीं कर देता।

मुमुक्षुः- मार्ग अन्दरसे ही मिलेगा।

समाधानः- अंतरमेंसे मार्ग मिलता है।

मुमुक्षुः- ...

समाधानः- अनन्त तीर्थंकरों मार्ग बता गये हैं, करना स्वयंको ही है। गुरुने वाणी बहुत बरसायी है। मार्ग अत्यंत स्पष्ट कर दिया है। किसीको कहीं भूल न रहे उतना गुरुदेवने स्पष्ट किया है। इसलिये स्वयंको ही करना है। अपनी कचासके कारण स्वयं करता नहीं है। अपनी भूल है। निमित्त तो प्रबल होता है भगवानकी वाणीका, गुरुकी