रहे हैं। भगवानका द्रव्य है, कितना महिमावंत चैतन्य द्रव्य है, ऐसा बता रहे हैं।
... भगवान कैसे और आत्मा कैसा... जैसा भगवानका आत्मा, वैसा अपना आत्मा, ऐसा आता है। इसलिये तू अंतर दृष्टि कर। भगवानकी महिमामें तेरी चैतन्य महिमा समायी है। तू तेरे ध्येयपूर्वक भगवानकी महिमा कर। ... कुदरती ऐसी रचना (है)।
.. मुमुक्षु जहाँ-तहाँ आत्माकी ही बात करते हैं। गुरुदेव विराजते हों वह अलग बात है, परन्तु अभी वर्तमानमें आत्माकी ही बात चलती है।
मुमुक्षुः- गुरुदेव विराजते थे, अभी आप विराजते हो तो इतनी ... ऐसा लगे...
समाधानः- करना (एक ही है), आत्मा ज्ञायकको पहचानना वही करना है। करना तो यही है।
मुमुक्षुः- ... आपने भी बहुत (दिया है)। अन्दरसे विचार करते हैं तो ज्ञायक.. ज्ञायक.. यह भिन्न ज्ञायक है, वह सब प्रत्यक्ष...
समाधानः- गुरुदेवने तो ... वह भाव, स्वरूप, पहचान सब गुरुदेवने (बताया)।
मुमुक्षुः- गुरुदेव ज्ञायक बताते थे, परन्तु सामान्य जो ध्रुव.. ध्रुव.. ध्रुव कहते थे, परन्तु ध्रुवका चित्र मस्तिष्कमें नहीं आता था। परन्तु ज्ञायक कहने पर...
समाधानः- ... दिशा बदल दी, सबके जीवनका परिवर्तन कर दिया, दृष्टि बदल दी। फिर अंतरसे करना वह स्वयंको बाकी रहता है। पंचमकालमें गुरुदेवने जन्म धारण किया, उनका इतना सान्निध्य मिला वह भी महाभाग्यकी बात है।
मुमुक्षुः- वास्तवमें तो पंचम कालका (आश्चर्य) है। इस कालमें वे यहाँ कहाँ? गुरुदेव यहाँ पधारे, माताजी यहाँ पधारे, विदेहकी यहाँ पूरी रचना हो, ...
समाधानः- गुरुदेवने वाणी बरसायी। एक स्थानमें रहकर इतने साल तक वाणी बरसायी। ऐसा तो कवचित ही इस पंचम कालमें बनता है। विहार करके, गुरुदेवने विहार भी किया और इतने काल तक वाणी बरसायी। कोई त्यागी हो तो जंगलमें हों, कोई कहाँ हो, गुरुदेव तो इस पंचम कालमें कुछ अलग ही हो गया। सबको उपदेश दिया। ... जो सान्निध्य मिला, वैसे ज्ञायकका सान्निध्य प्राप्त कर लेना, वह करनेका है। .. गुरुदेवने इस कालमें शास्त्रके अर्थ सूलझाये। एक-एक शास्त्र पर कितनी बार (प्रवचन किये)। गुरुदेव जागे तो सब बदल गया। सबकी दिशा बदल गयी।
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- गुरुदेवका सान्निध्य...
मुमुक्षुः- .. गुरुदेवके साथ प्रसंग, उसमें यह प्रसंग..
मुमुक्षुः- गुरुदेवकी कृपा और आपके आशीर्वाद, आपका सान्निध्य...
समाधानः- सब पेपरोंमें तत्त्वके विरूद्ध सब आते रहता था। मंगलमूर्ति थे, सब