Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-
ट्रेक-१४०

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समाधानः- उसमें आनन्द गुणकी मुख्यता है। अनन्त गुण, सर्वगुणांश सो सम्यग्दर्शन। सर्व गुणका अंश शुद्धरूप परिणमित होता है। आनन्दकी मुख्यता होवे तो भी अनन्तासे भरा हुआ आत्मा, उसका वेदन उसमें आ जाता है।

मुमुक्षुः- माताजी! जिस जाननक्रियामें आत्मा जाननेमें आता है, वह जाननक्रिया विभावको क्या परज्ञेय तरीके जानती है? जैसे भीँत जुदी है, ऐसा राग जुदा है, ऐसे वह ज्ञप्तिक्रिया जानती है?

समाधानः- भीँत तो परद्रव्य है। राग तो अपनी विभाविक परिणति है। विभाव परिणति है, वह कोई अपेक्षासे पर है। और विभावकी परिणति अपने पुरुषार्थकी मन्दतासे होती है। इसलिये वह तो स्वभावभेद है। वह मैं नहीं हूँ। भीँत मैं नहीं हूँ, ऐसे राग मैं नहीं हूँ। स्वभावका भेद करती है। परन्तु राग होता है अपने पुरुषार्थकी मन्दतासे। वह जानता है कि पुरुषार्थकी मन्दतासे वह राग होता है। परन्तु जानता है कि वह स्वभाव नहीं है, भेदज्ञान करता है। जैसे यह पर है, वैसे यह भी पर है। परन्तु वह पुरुषार्थकी मन्दतासे अशुद्ध परिणति होती है, ऐसे जानता है।

जिसका जैसा कार्य है, वैसा वह जानता है। जाननक्रिया जानती है कि यह पर है, मेरा स्वभाव नहीं है। ऐसा ज्ञानमें रहता है, मेरे पुरुषार्थकी मन्दतासे (होता है)। संपूर्ण वीतरागता हो जाय, वीतराग दशा हो जाय तो रागकी क्रिया भी छूट जाती है। रागका मैं कर्ता नहीं हूँ तो भी अस्थिरता होती है, पुरुषार्थकी कमजोरीसे होती है। वह कोई कर नहीं देता है। होता है, अपनी मन्दतासे होता है, ऐसे जानता है।

मुमुक्षुः- है तो अपनी पर्यायमें परिणमन, पर अंतर्मुख हुआ ज्ञान उसमें व्यापता नहीं है, अवगाहन करता नहीं है।

समाधानः- ... नहीं है, इसलिये उसका भेद करता है कि राग मैं नहीं हूँ, ज्ञान मैं हूँ, राग मैं नहीं हूँ, ऐसा भेद करता है। परन्तु जानता है, वह होता है पुरुषार्थकी मन्दतासे। वह मेरा स्वभाव नहीं है, इसलिये वह पर है। पुरुषार्थकी मन्दतासे होता है।

मुमुक्षुः- अंतर्मुख ज्ञानमें अनाकुल ज्ञानका स्वाद और आकुलित विभावका स्वाद एक समयमें .... से भासित होता है? जुदा-जुदा।

समाधानः- जुदा-जुदा। जितने अंशमें अनाकुलता प्रगट हुयी, सविकल्प दशामें, स्वानुभूतिके बाद जो सविकल्प धारा रहती है, उसमें आंशिक अनाकुलता रहती है और आकुलता, अस्प अस्थिरता आकुलता भी रहती है। दोनोंको जानता है। दोनों वेदन होते हैं। अनाकुलता और आकुलता। जितने अंशमें निराकुलता है, शान्तिका वेदन है, उसको शान्ति, समाधि, निराकुलता उसको भी वेदन करता है और अल्प राग है उसको