भी जानता है। दोनों-ज्ञानधारा और उदयधारा एकसाथ चलती है।
मुमुक्षुः- कभी कहते हैं कि माताजी! वेदनमें आये वही आत्मा है, कभी कहते हैं, त्रिकाली द्रव्य वही आत्मा है। वेदनमें आये वह आत्मा, द्रव्य वह आत्मा नहीं।
समाधानः- वह तो अपेक्षासे कहते हैं। वेदनमें आता है इसलिये वह जैसा है वैसा वेदनमें आता है। ऐसे पर्याय अपेक्षासे (कहनेमें आता है)। बाकी अनादिअनन्त जो ज्ञायक स्वभाव है वही आत्मा है।
मुमुक्षुः- व्यवहारनयसे कथनी कही?
समाधानः- पर्यायका वेदन और द्रव्य (कहा वह) दूसरी अपेक्षासे (कहनेमें आता है) कि अनादिअनन्त आत्मा है वह द्रव्य।
मुमुक्षुः- सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः मतलब उसमें ... क्या होनो चाहिये?
समाधानः- उसमें रमणता नहीं हुई न। ज्ञायककी दृष्टि की, ज्ञान की। उसकी रमणता, उसकी चारित्रकी दशा-वीतरागता प्रगट होनी चाहिये। सम्यग्दर्शन प्रगट हुआ, ज्ञान किया बादमें रमणता प्रगट होती है, स्वरूप रमणता। वीतराग दशा प्रगट होती है।
मुमुक्षुः- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र प्राप्त करनेके बाद भी यह जरूरी है कि ...
समाधानः- पूर्ण प्राप्ति हो जाय बादमें तो कुछ नहीं रहता। बादमें नहीं रहता। अल्प चारित्र है, अल्प स्वरूप रमणता है।
मुमुक्षुः- अभी स्वामीजी तो हमारे सामने नहीं है, लेकिन कहते हैं कि जब कोई तीर्थंकर हों या ... जैसे कि हम लोग बोलते हैं कि कानजीस्वामी मोक्षगामी जीव थे। कानजीस्वामीको कैसे मालूम पडा कि वह मोक्षगामी जीव हैं? जैसे अपने पुराणमें आया कि उन्होंने दर्पणके सामने देखा तो उनको अपने पूर्व भवका जन्म दिखायी दिया। वैसे कानजीस्वामीको कब अनुभव हुआ कि वह मोक्षगामी जीव है?
समाधानः- कानजीस्वामीको अंतर स्वानुभूति हुई।
मुमुक्षुः- मगर कभी उसका एक पर्यायार्थिक समय आता है, अभी जैसे कोई भी मोक्षगामी जीव तो हो सकता है, कोई भी हो सकता है, हम भी हो सकते हैं, ये भी हो सकते हैं, ये भी हो सकते हैं, मगर उनका एक काल आयगा-अक समय आयगा तभी उनको महेसूस होगा, नहीं तो ऐसे नहीं हो सकता।
समाधानः- पुरुषार्थ करके उसको स्वानुभूति होती है, वह जान सकता है कि मैं मोक्षगामी हूँ।
मुमुक्षुः- ये तो निश्चित है कि कानजीस्वामी गुरुदेव मोक्षगामी जीव थे। ये तो