है, परन्तु शक्तिरूप है। उसका लक्ष्य करे तो प्रगट होता है, उसकी दृष्टि करे, ज्ञान करे तो प्रगट होता है। ऐसा शक्ति-स्वभाव है।
... उसमें विभाव नहीं है। शुद्ध स्वरूप अनादिअनन्त (है)। वह शुद्धात्मा है। वह अनादिअनन्त स्वतःसिद्ध एक तत्त्व है। मुक्तिका मार्ग है। शुद्धात्माको अनादि कालसे पहिचाना नहीं है। दृष्टि बाहर विभाव पर है। मानों मुझे परसे लाभ होता है और पर ऊपर दृष्टि है। शुद्धात्माको पहिचानना। शुद्धात्मा अनादिअनन्त, अनन्त गुणओंसे भरपूर, अनन्ते शक्तिओंसे भरपूर है। उसमें विभावका अन्दर प्रवेश नहीं हुआ है। परन्तु मैं विभावयुक्त हो गया, मैं विभाववाला, दुःखवाला, मलिनतावाला ऐसा हो गया, ऐसी मान्यता है। बाकी अनादिअनन्त शुद्धात्मा मूल स्वभावसे जैसा है वैसा है। उसे पहचाने तो भवका अभाव हो, तो स्वानुभूति हो, उसमें पुरुषार्थ करे, उसमें लीनता करे, उसमेें परिणमन करे वही मुक्तिका मार्ग है। और गुरुदेवने वह बताया है, वही करनेका है। उसमें आनन्द है। आनन्दसे भरपूर है आत्मा तो।
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- कठिन काल कोई आडे नहीं आता, स्वयं पुरुषार्थ करे तो प्रगट हो ऐसा है। काल उसमें आडे नहीं आता। अपने पुरुषार्थकी मन्दतासे कार्य प्रगट नहीं होता है। इस कालमें केवलज्ञान प्रगट नहीं होता है, परन्तु आत्माकी स्वानुभूति तो प्रगट होती है, परन्तु स्वयं पुरुषार्थ नहीं करता है। अंतरमें मैं ज्ञायक हूँ, मैं चैतन्य हूँ, यह विभाव मैं नहीं हूँ, ऐसा भेदज्ञान (करे)। स्वयं अपनेमें एकत्वबुद्धि और परसे विभक्तता करे तो स्वानुभूति प्रगट हो ऐसी है।
आचाया, मुनिवरों सब इस कालमें हो गये हैं। निरंतर झरता आस्वादमें आता ऐसा चैतन्यदेव प्रगट हुआ है, ऐसा आचार्य कहते हैं। स्वयं अंतरमें अपनी योग्यता तैयार करे।
... गहरे संस्कार वह प्रगट होते हैं। स्वयंने जो तैयारी की हो उस जातकी योग्यता चैतन्यमें होती है। इस प्रकार संस्कार रह जाते हैं।
मुमुक्षुः- ... पर्यायके साथ ऐसा कोई जुडान रहता होगा? पर्याय पर्यायके बीच?
समाधानः- जुडान नहीं, परन्तु ऐसी चैतन्यमें योग्यता होती है कि जो योग्यता अन्दर यथार्थपने हो, वह पूर्व भवमें उसे नैसर्गिकरूपसे प्रगट होते हैं, उस जातका पुरुषार्थ करे।
मुमुक्षुः- बहिनश्री! इस भवमें जो यह धर्म प्राप्त किया, उसमें गत भवके कोई संस्कार होंगे? पूर्व भवमें कोई संस्कार डाले होंगे?
समाधानः- संस्कार तो होते हैं पूर्वके, परन्तु सबको हो ही ऐसा नहीं होता।