Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

००५

प्रश्नः- उसका समय भिन्न-भिन्न होता है? प्रश्नका और व्याख्यानका? चौदह पूर्व, बारह अंगका भिन्न-भिन्न समय होता है?

समाधानः- दिव्यध्वनि छूटती ही रहती है। उसमें बीचमें कोई प्रश्न नहीं पूछता। भगवानको इच्छा कहाँ है, सहज वाणी छूटती है। बिना इच्छा। दिव्यध्वनिका काल हो तब दिव्यध्वनि छूटती है। प्रश्न तो जिसके पुण्य हो वह प्रश्न करे और वाणीमें उत्तर आता है। बाकी सबको बहुभाग तो समाधान ही हो जाता है। प्रश्न पूछना नहीं पडता।

मुमुक्षुः- मुख्य विषय तो मात्र अध्यात्मका ही होता है कि दूसरा भी होता है?

समाधानः- जो मुक्तिका मार्ग है, भगवानकी वाणीमें सब आता है। चौदह ब्रह्मांडका स्वरूप पूरा आता है भगवानकी वाणीमें। सब आता है। द्रव्यानुयोग, चरणानुयोग, अध्यात्म आदि सबकुछ आता है। करणानुयोग। कुछ कम नहीं आता, सब आता है। उसमें मुख्य क्या है, मुक्तिका मार्ग क्या है, सबकुछ भगवानकी वाणीमें आता है।

मुमुक्षुः- यहाँ कहनेवाला क्रमपूर्वक कहता है, वहाँ तो ऐसा कुछ नहीं है।

समाधानः- सब एकसाथ आता है। भगवानका आशय क्या है वह समझ लेते हैं। .. सब आता है। .. भगवानकी वाणीमें बहुत आता है, उतना ग्रहण नहीं होता। भगवानकी वाणीमें चौदह ब्रह्मांडका पूरा स्वरूप आता है।

मुमुक्षुः- सामान्य जीव पूर्ण ग्रहण कर नहीं पाते।

समाधानः- गणधर आदि सब कहते हैं, प्रभु! आपकी दिव्यध्वनिको मैं पहुँच नहीं पाता। उन्हें चौदह पूर्वका ज्ञान प्रगट होता है। प्रभु! कहाँ मेरा ज्ञान और कहाँ आपका ज्ञान! कहाँ आपकी वाणी! आपके गहन रहस्योंको मैं पहुँच नहीं पाता। वे भी ऐसा कहते हैं। आपकी अपूर्व वाणीको मैं पहुँच नहीं सकता। ऐसे गणधर, इन्द्रो, मुनिन्द्रो सब ऐसा कहते हैं। सामान्य तो क्या जो शक्तिशाली हैं वे सब ऐसा कहते हैं। कहाँ प्रभु आपका ज्ञान एक समयमें लोकालोकको जाननेवाला, उसमें द्रव्य- गुण-पर्यायका स्वरूप लोकालोकको एक समयमें जानते हो। अनन्त द्रव्य, अनन्त द्रव्यके गुण-पर्याय, स्व और पर सबको एक समयमें जानते हो। भूतकाल, वर्तमानकाल, भविष्यकाल सब एक समयमें आपकी वाणीमें आता है। ऐसी आपकी वाणीको इस ज्ञानमें-क्षयोपशम ज्ञानमें-ग्रहण नहीं कर सकते हैं। अपूर्व वाणी! प्रभु! मैं आपको पहुँच नहीं पाता हूँ। हमारा अल्पज्ञान आपकी अपूर्व वाणी गहनतासे भरी, हम पहुँच नहीं पाते। गणधरको पूर्ण श्रुतज्ञान प्रगट होता है तो भी वे ऐसा कहते हैं।

मुमुक्षुः- कम पकडमें आता है उसमें भी उतना ही आनन्द आता है?