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समाधानः- दुःख न लगे तो उसकी भूल है। अनुकूल-प्रतिकूलता दोनों दुःखरूप है, अपना स्वभाव नहीं है। स्वभाव सुखका धाम आत्मा है। अनुकूलता तो पुण्य है। वह तो पुण्यका प्रकार है। उसमें जीव अनादि कालसे अटक जाता है। पुण्यमें और शुभभावमें उसे मीठास लगती है, उसमें अटक गया है। वह सुखका कारण नहीं है, वह तो आकुलतारूप है, विभाव है। वह शुभभावमें (अटक गया है)। बीचमें शुभभाव आये, परन्तु वह दुःख और दुःखका कारण है। उससे भिन्न आत्माको पहिचान लेना। अनुकूलता भी दुःखरूप और प्रतिकूलता दुःखरूप, सब बाह्य संयोग है। वह संयोग आत्माको सुखकर्ता नहीं है। सुखकर्ता अपना आत्मा निराला है, उसमेंसे सुख प्रगट होता है। बाहरसे कहींसे नहीं आता है। सुख, ज्ञान और अनन्त गुण उसमेंसे प्रगट होते हैं। वही करने जैसा है।
.. रुचि प्रगट करनी, उस ओर उपयोग जाय ऐसा करना। वह सब अपने हाथमें है। रुचि करनी, रुचि लगे बिना मुक्तिके मार्गमें कहाँ जा सके ऐसा है? जिसे रुचि नहीं है वह मुक्तिके मार्गमें जा नहीं सकता। जिसे परमें रुचि है, जिसे आत्मा नहीं रुचता है, वह मुक्तिके मार्ग पर जा नहीं सकता। अंतरकी रुचि प्रगट हो तो ही वह स्वयं अंतरमें जा सके ऐसा है। रुचि प्रगट करनी अपने हाथकी बात है।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- क्यों क्या, कारणका कोई कारण नहीं होता। अकारण द्रव्य है। रुचि कैसे प्रगट करनी वह अपने हाथकी बात है। जिसे परमें सुख लगता है उसे रुचि नहीं होती। जिसे परमेंसे सुखबुद्धि ऊड जाय उसे अपनी रुचि जागृत होती है। अपनेमें सुख लगे उसे परकी रुचि ऊड जाती है। उसमें मन्दता, तीव्रता, पुरुषार्थ मन्द, तीव्र रुचि, मन्द रुचि अपने हाथकी बात है। उसमें किसीका कारण नहीं है। अकारण पारिणामिक द्रव्य वह स्वयं करे तो हो सके ऐसा है।
... यह मनुष्यभव तो मुश्किलसे मिलता है। अनन्त जन्म-मरण करते-करते यह मनुष्यभव मिला। उसमें गुरुदेवने यह मार्ग बताया है। उसकी-आत्माकी रुचि करने जैसी है। आत्मा कैसे (पहचाना जाय)? आत्मा तो शाश्वत है। वह कोई अपूर्व अदभुत वस्तु है, चैतन्यतत्त्व। यह शरीर और आत्मा दोनों भिन्न है। आत्माको पहिचाननेका प्रयत्न करना। उसकी रुचि करनी, उसकी महिमा करनी, वह करने जैसा है।
गुरुदेवने कोई अपूर्व मार्ग बताया है। बाकी संसारका तो सब ऐसे ही चलते रहता है। इस संसारमें आत्माकी कुछ रुचि हो तो अच्छी बात है। उसका वांचन, विचार अथवा देव-गुरु-शास्त्रकी ओर महिमा हो और आत्मा कैसे पहिचाना जाय? आत्माकी रुचि हो वह करने जैसा है। जन्म-मरण टालनेका उपाय गुरुदेवने मार्ग बताया। कोई