०१७
लगे।
समाधानः- .. मार्ग बताया है, वही करना है। ज्ञायक.. ज्ञायक.. ज्ञायकका रटन करना। शरीर भिन्न और आत्मा भिन्न है। मैं ज्ञायक हूँ। ज्ञायक भगवान आत्मा ज्ञायक है, उसे पहचान। ये विभावस्वभाव अपना नहीं है। एक ज्ञायक आत्माको पहचानना। ज्ञायकदेव भगवान है। उसका रटन करना और शुभभावमें देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा श्रावकोंको आये बिना नहीं रहती। जिनेन्द्र देव, गुरु और शास्त्र। अंतरमें ज्ञायकदेवको कैसे पहचाने, उसका रटन, उसकी जिज्ञासा, उसकी भावना।
मुमुक्षुः- थोडी ज्यादा बात कहिये।
समाधानः- ज्यादा क्या, जो प्रयोजनभूत होता है उतना ही कहते हैं। गुरुदेवको राजकुमारका स्वप्न आया था। दीक्षा लेनेके बाद तुरन्त। मैं राजकुमार हूँ। लेकिन यह क्षेत्र वह नहीं है। राजकुमार, (वह) शरीर बडा, इतना इस क्षेत्र जितना शरीर नहीं। बडा शरीर और राजकुमार, झरीके वस्त्र। राजकुमार हूँ ऐसा स्वपन्न आया। गुरुदेवने बादमें कहा कि मैं राजकुमार हूँ, मुझे स्वप्न आया। दीक्षा लेनेके बाद।
मुमुक्षुः- बहिनश्रीने कहा कि, आप राजकुमार थे। हाँ, वह मैं। गुरुदेवने कहा, हाँ, वह मैं।
मुमुक्षुः- गुरुदेवको क्या कहा?
समाधानः- गुरुदेवको जो आया था वह कहा, और क्या? गुरुदेवने बहुत बातें प्रसिद्ध की है। गुरुदेव विदेहक्षेत्रमें राजकुमार थे। सीमंधर भगवानके समवसरणमें जाते थे, वाणी सुनते थे। भगवानकी वाणीमें भगवानने कहा, ये तीर्थंकर होनेवाले हैं। ये राजकुमार भविष्यमें तीर्थंकर होनेवाले हैं।
मुमुक्षुः- यहाँ सब चिह्न भी मिल गये, निर्भिकता, निडरता, वाणी, श्रुतकी लब्धि...
समाधानः- वह सब तो दिखता था, इसी भवमें दिखता था। संप्रदायको छोडकर जो सत्य था उसे प्रसिद्ध किया। उनकी निजरता, सिंह जैसी शौर्यता, वह सब अलग ही था। उनकी वाणीकी दहाड, सबको भेदज्ञान हो जाये और यदि पुरुषार्थ हो तो समझ जाये, ऐसी उनकी वाणीकी दहाड थी। कोई समझे या नहीं समझे, लेकिन सुनते ही रहे। मुंबईमें इतना समूह इकट्ठा होता था, समझे, नहीं समझे, सुनते ही रहते थे। ये कुछ अलग ही कहते हैं। .. ऐसा ही कहते थे, सब भगवान है।
मुमुक्षुः- उनसे अधिक ज्ञानी तो कोई है नहीं। उनके श्रीमुखसे जो बात सुनी है, उससे दूसरी कोई बात हमें नहीं रुचति। उनके सिवा हमें दूसरा कुछ है ही नहीं। गुरुदेवश्रीने "बहिनश्रीके वचनामृत' पर प्रवचन दिये।
समाधानः- .. गुरुदेव यहाँ बारंबार पधारते थे। अलग हो गये, नहीं तो सब