Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

१४४ अपने हाथकी बात है। दिशा बतायी कि इस मार्ग पर जाओ। जैसे हाथ पकडकर अंगूली पकडकर दिशा बताये कि इस दिशामें जाओ। सबको दिशा बतायी।

सुखधाम अनन्त सुसंत चही, दिन रात्र रहे तदध्यान मही। सुखका जो धाम है, उसे सुसन्त इच्छते हैं। अनन्त सुखका धाम। दिन-रात उसके ध्यानमें रहते हैं। प्रशान्ति अनन्त सुधामय जे। जो प्रशान्ति सुधामय अमृतसे भरी जो सुधामय शान्ति। प्रणमुं पद ते वरते जयते। वह पद प्रणमन करुं, उस पदको नमन करे। वह प्रधानरूप है, ध्येयरूप है। प्रशान्ति अनन्त सुधामय जे। सुधामय प्रशान्ति बरस रही है। अमृतसे भरी हुयी शान्ति सुधामय।

पहले तू उसमें दृष्टि कर और उसमेंसे भेदभाव, विभावभाव आदि कुछ तेरेमें नहीं है। वह आता है न? वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श ... कुछ नहीं है। गुणस्थान तेरी साधक दशामें आते हैं, परन्तु एक बार दृष्टिसे, पूर्ण दृष्टिसे देख। पूर्णतासे देख। द्रव्यको पूर्ण शुद्ध देख ले। फिर पर्याय कैसे है, उसका ज्ञान कर, उसका विवेक कर। उसका विवेक कर तो अनन्त शान्ति प्रगट होगी। अनन्त दर्शन, अनन्त आनन्द, सब अनन्त है। सब गुण अनन्त-अनन्त शक्तिसे भरा है। अनन्तासे भरा ऐसा सुख स्वरूप आत्मा (है)। सब गुणसे (भरा) ऐसा अदभुत आत्मा है। उसे तू देख और उसकी साधना कर, तो पर्यायमें भी अनन्त सुखका धाम तेरे वेदनमें प्रगट होगा।

मुमुक्षुः- ... समय-समयके परिणमनमें मानों कोई वस्तु ही न हो, ऐसा..

समाधानः- हाँ, ऐसा हो जाता है। समय-समयके परिणाममें अंतर्मुहूर्त-अंतर्मुहूर्तमें पलटता रहे। मानों पलटता हो वह मैं हूँ, ऐसे। पलटता ही रहता है। और एक स्वरूप, एकरूप ज्ञायक हूँ, वह पकड नहीं सकता है। पूर्ण ज्ञायक है। शक्तिरूपसे तो पूर्ण ज्ञायक है।

... आबाल-गोपालको अनुभवमें आ रहा है। आबाल-गोपालको क्या अनुभवमें आ रहा है? ऐसे ही पूछा करते हैं। अनुभवमें आ रहा है वह सत्यरूपसे (अनुभवमें नहीं आता है)। वह तो उसका अस्तित्व कि मैं यह चैतन्य हूँ, ऐसा उसका ज्ञानस्वभाव उसे अनुभवमें आ रहा है। उसको विशेष शुद्धात्मा कहाँ अनुभवमें आ रहा है? उसे तू पकड सके इस तरह अनुभवमें आ रहा है। वह जड नहीं है। तेरी चैतन्यता चैतन्यरूपमें तुझे अनुभवमें आ रही है। द्रव्य-गुण-पर्याय चैतन्यरूप है। चैतन्यका अस्तित्व चैतन्यरूपसे तुझे ख्यालमें आये, ऐसा अस्तित्व तूझे अनुभवमें आ रहा है। द्रव्य अनुभवमें आता है, गुण अनुभवमें आता है, पर्याय अनुभवमें आती है, ऐसा कहते रहते हैं।

ज्ञान स्वभावका अस्तित्व, द्रव्यका अस्तित्व कहो, गुणका कहो, पर्यायका कहो वह तुझे अनुभवमेंं आ रहा है। अनुभवमें आ रहा है अर्थात वह तुझे शुद्धात्मा रूप,