५८अमृत वाणी (भाग-४)
शुद्ध परिणतिरूप अनुभवमें आ रहा है, ऐसे नहीं, परन्तु तुझे अनुभवमें आ रहा है, ऐसा कहते हैं। जड नहीं है, चैतन्यता चेतनरूप तुझे अनुभवमें आ रही है। यथार्थताकी यहाँ कोई बात नहीं की है। आबाल-गोपालको अनुभवमें आ रहा है। जड नहीं है, तू स्वयं चैतन्य है, ऐसे तुझे चेतन चैतन्यरूप ख्यालमें आ रहा है। पुरुषार्थ होता नहीं इसलिये ऐसा कहते रहे।
मुमुक्षुः- सच्ची रीत पकडमें नहीं आती इसलिये.. समाधानः- .. अनुभवमें आ रहा हो, तो वैसे अनुभवमें नहीं आ रहा है। तेरा स्वभाव ग्रहण हो उस तरह अनुभवमें आ रहा है। यथार्थरूप अनुभव, मुक्तिका अंश प्रगट हुआ हो उस तरह अनुभवमें नहीं आ रहा है।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!