Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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६२अमृत वाणी (भाग-४)

गुण है। विशेष गुण है। चेतन-चेतनागुण असाधारण है। दोनों तत्त्व भिन्न पडे-जड तत्त्व और चैतन्यतत्त्व। जड कुछ जानता नहीं है। चैतन्यतत्त्व जाननेवाला है। वह उसका असाधारण गुण है। पुदगलका जड है, जानता नहीं है। असाधारण गुण है, ज्ञान स्वभाव है। विशेष गुण है।

मुमुक्षुः- सुखगुण विशेष गुण है?

समाधानः- ज्ञानस्वभाव विशेष गुण है, आत्माका मुख्य गुण है। ज्ञानगुण मुख्य है। सुखगुण मुख्य है, परन्तु वह विकल्प टूटे बिना अनुभवमें नहीं आता। जब विकल्प टूटे तब वह अनुभवमें आता है। सुखगुण। और ज्ञानस्वभाव तो ऐसे जाननेमें आता है कि मैं जाननेवाला हूँ। ज्ञानस्वभावको लक्षणसे पहचान लेता है।

मुमुक्षुः- विकल्प टूटे तो सुखगुण अनुभवमें आये।

समाधानः- सुखगुण प्रगट होता है।

मुमुक्षुः- ...विकल्प टूटना और विकल्पातीत अवस्था प्राप्त करना, ये तो...

समाधानः- अनुमानसे प्रतीति कर सकता है कि ज्ञानमें सुख है, ज्ञानमें आनन्द है, आत्मामें (सुख है, ऐसी) प्रतीति तो हो सकती है। परन्तु अनुभव आनन्दका विकल्प टूटे तब आता है। हो सकता है। विकल्पातीत अवस्था, निर्विकल्प दशा स्वानुभूति (हो सकती है)। सम्यग्दर्शन उसको कहते हैं, जिसको स्वानुभूति होती है उसको सम्यग्दर्शन कहते हैं। स्वानुभूति हो सकती है। गृहस्थाश्रममें स्वानुभूति (होती है)। सम्यग्दर्शन प्रगट (होता है)। विकल्पातीत विकल्पसे अतीत निर्विकल्प दशा हो सकती है। मुनिको विशेष होती है। क्षण.. क्षण.. क्षणमें निर्विकल्प दशा विकल्प (टूटकर) क्षण-क्षणमें स्वानुभूति होती है। गृहस्थाश्रममें ऐसी नहीं होती, कम होती है, परन्तु हो सकती है। विकल्पातीत अवस्था हो सकती है। सम्यग्दर्शन इस पंचमकालमें हो सकता है। स्वानुभूति निर्विकल्प दशा पंचम कालमें हो सकती है।

मुमुक्षुः- सन्तोंका तो लग रहा है, मैंने एक-दो दिन अपना थोडासा स्थगितसा रख लिया और इतवार तकके लिये (रुक गया), बाकी परिवारवालोंको आज (भेज दिया)। उनको थोडी कम-सी रुचि थी तो उनको पालीताणा वगैरह (गये)।

समाधानः- परपदार्थमें रुचि लगी है, आत्मामें रुचि कम है। आत्मामें रुचि लगे, बस, आत्मामें सब है, बाहरमें नहीं है। आत्मामें सुख है, आनन्द है, अनन्त गुणसे (भरपूर) आत्मा अदभुत वस्तु है। ऐसे आत्माकी महिमा आवे, आत्माकी रुचि लगे तब आत्माकी (मुख्यता) हो।

मुमुक्षुः- ये भी उसीका आनन्द हुआ न, जो चैतन्यका आनन्द है उसको चैतन्यकी प्राप्ति समझमें आ जाय कि मैं चैतन्य हूँ, तो उसका मन भी लगने लगेगा।