Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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६४अमृत वाणी (भाग-४)

करे। बुद्धिमें ग्रहण करे, परन्तु अंतरसे ग्रहण करे तो यथार्थ होता है।

मुमुक्षुः- वचनामृतमें है, घोडा जैसे छलंग लगाये, वैसे किसीको..

समाधानः- किसीको जल्दी होता है। घोडा छलंग लगाये ऐसे एकदम अंतर्मुहूर्तमें होता है और किसीको धीरे-धीरे होता है। वह तो उसकी जैसी पुरुषार्थकी गति।

मुमुक्षुः- उसके पहले तो पुरुषार्थ सब विकल्पका ही होता है न?

समाधानः- साथमें विकल्प होते हैं, परन्तु मैं विकल्प नहीं हूँ। ऐसी प्रतीति उसके साथ होनी चाहिये। विकल्प आये, फिर भी मैं विकल्प नहीं हूँ। विकल्पसे मैं भिन्न हूँ, मैं भिन्न हूँ। उस प्रकारका अंतरसे अभ्यास, ऐसी परिणति प्रगट करे। विकल्प आने पर भी मैं विकल्प नहीं हूँ, ऐसा भेदज्ञान करे, ऐसी श्रद्धा करे। जो छूटे वह तो.. विकल्प तो पहले होता ही है, अनादिकालसे विकल्पमें तो पडा ही है। उससे छूटनेका प्रयत्न करे कि विकल्प मैं नहीं हूँ।

मुमुक्षुः- ज्ञायकमें अनन्त गुण लेने?

समाधानः- हाँ। एक ज्ञायकका अस्तित्व ग्रहण किया उसमें अनन्त गुण आ जाते हैं। उसे ज्ञानमें सब आये, परन्तु दृष्टि तो कोई भेद नहीं करती है। वह तो अभेदको एक सामान्यको ग्रहण कर लेती है, अपना ज्ञायकका अस्तित्व। उसमें उसकी अनन्त शक्तियाँ, अनन्त गुण आ जाते हैं।

मुमुक्षुः- और वेदनमें भी अनन्त गुण आते हैं?

समाधानः- वह तो उसे स्वानुभूतिमें आते हैं। अनन्त गुणोंकी पर्याय होती है। अनन्त गुणकी पर्याय उसे वेदनमें (आती है)। लेकिन उसके कोई भिन्न-भिन्न नाम नहीं होते। उसके वेदनमें आती है।

मुमुक्षुः- स्वानुभूतिके वेदनकी कैसी शान्ति और कैसा अतीन्द्रिय रस होता है, उसका थोडा वर्णन...।

समाधानः- वह तो कोई वचनमें नहीं आता। जगतसे भिन्न है, जगतसे भिन्न ही है। जो उसे विभावका आनन्द और विभावका रस है वह तो अलग है। ये तो निर्विकल्प आनन्द है। चैतन्यके आश्रयमेंसे... चैतन्यरूप है, चैतन्यमेंसे प्रगट हुआ आनन्द है। उसे किसीका आश्रय नहीं है। स्वयं अपने आश्रयमेंसे प्रगट हुआ है। जैसे बर्फ है, ऐसे स्वयं अनन्त शान्ति, अनन्त ठण्डकसे भरा है, अनन्त आनन्दसे भरा है। शान्ति एक अलग चीज है, ये तो अनन्त आनन्दसे भरा है, अनन्त ज्ञानसे भरा है। वह तो उसका गुण ही है। जो अपने गुण हैं, उन गुणोंकी पर्याय प्रगट होती है। उसे कोई विकल्पका आश्रय नहीं है। जहाँ आकुलता नहीं है। शान्ति तो है, परन्तु आनन्द प्रगट होता है।