કેવળજ્ઞાની સર્વ આત્મપ્રદેશ જાણે છે. સ્વાનુભૂતિમાં પણ શું સર્વ પ્રદેશથી આત્મા જણાય છે? 0 Play केवळज्ञानी सर्व आत्मप्रदेश जाणे छे. स्वानुभूतिमां पण शुं सर्व प्रदेशथी आत्मा जणाय छे? 0 Play
જ્ઞાનીને પ્રચુર આનંદ આવે છે, પ્રચુર એટલે કેટલો? 2:00 Play ज्ञानीने प्रचुर आनंद आवे छे, प्रचुर एटले केटलो? 2:00 Play
પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રી બહુ યાદ આવે તો શું કરવું? 3:05 Play पूज्य गुरुदेवश्री बहु याद आवे तो शुं करवुं? 3:05 Play
પાછળ પડે તો કાર્ય થયા વિના રહે જ નહીં...આત્મા તો અનંત શકિતથી ભરેલો છે 4:30 Play पाछळ पडे तो कार्य थया विना रहे ज नहीं...आत्मा तो अनंत शकितथी भरेलो छे 4:30 Play
આપે જે દ્રવ્યનો અનુપમ મહિમા બતાવ્યો ‘‘તે હું છું’’ એમ નિર્ણય કરી અને જો તે તરફ લક્ષ કરવું તેને શું દ્રષ્ટિ કહેવાય છે? અથવા વસ્તુ જેવી છે તેવી જાણી શ્રદ્ધા કરવી તેને દ્રષ્ટિ કહેવાય છે? 7:50 Play आपे जे द्रव्यनो अनुपम महिमा बताव्यो ‘‘ते हुं छुं’’ एम निर्णय करी अने जो ते तरफ लक्ष करवुं तेने शुं द्रष्टि कहेवाय छे? अथवा वस्तु जेवी छे तेवी जाणी श्रद्धा करवी तेने द्रष्टि कहेवाय छे? 7:50 Play
...... નિર્ણયનું જોર વધી જાય ત્યારે શું વિકલ્પ છૂટે છે? 9:35 Play ...... निर्णयनुं जोर वधी जाय त्यारे शुं विकल्प छूटे छे? 9:35 Play
આત્માનો મહિમા વધારે કેવી રીતે આવે? 11:00 Play आत्मानो महिमा वधारे केवी रीते आवे? 11:00 Play
વારંવાર આ વાત સાંભળવા છતાં જીવ વળવા માટે કેમ પ્રયત્ન કરતો નથી? 12:10 Play वारंवार आ वात सांभळवा छतां जीव वळवा माटे केम प्रयत्न करतो नथी? 12:10 Play
આવો જોગ મળવા છતાં સમ્યગ્દર્શનની પ્રાપ્તિ ન થઈ તો અહીંયાથી ગયા પછી જીવ કયાંય ખોવાઈ જાય તેવું બને ખરું? 15:30 Play आवो जोग मळवा छतां सम्यग्दर्शननी प्राप्ति न थई तो अहींयाथी गया पछी जीव कयांय खोवाई जाय तेवुं बने खरुं? 15:30 Play
मुमुक्षुः- आज सुबह टेपमें आया था कि केवलज्ञानी सर्व आत्मप्रदेशसे जानतेहैं। तो स्वानुभूतिमें भी सर्व प्रदेशसे आत्मा ज्ञात होता है?
समाधानः- उसे कहाँ केवलज्ञान प्रगट हुआ है, उसे तो क्षयोपशमज्ञान है।
मुमुक्षुः- परन्तु वह तो प्रत्यक्ष है न?
समाधानः- आंशिक वेदन प्रत्यक्ष है।
मुमुक्षुः- वेदन प्रत्यक्ष है, प्रदेश प्रत्यक्ष नहीं है।
समाधानः- प्रदेश नहीं है, वेदन प्रत्यक्ष है।
मुमुक्षुः- तो सर्व प्रदेशसे?
समाधानः- उसे जीवके प्रदेश दब नहीं गये हैं। उसे निरावरण असंख्य प्रदेशमें अमुक अंश तो खुल्ले ही हैं। उसके खुल्ले अंशसे जानता है।
मुमुक्षुः- इन्द्रियज्ञानमें तो बराबर है कि अमुक अंशोंसे जानता है। परन्तु अतीन्द्रियवेदनके कालमें?
समाधानः- वह जानता है लेकिन जो केवलज्ञानी जानते हैं, वैसे वह नहीं जानताहै। वेदन प्रत्यक्ष है। थोडा जाने और थोडा न जाने, ऐसा नहीं है। पूरे आत्माको जानता है।
मुमुक्षुः- पूरे आत्माको लेकिन सर्व प्रदेशसे?
समाधानः- हाँ, सर्व प्रदेशसे पूरे आत्माको जानता है। उसे भेद नहीं पडता है कि इतने प्रदेश जाने और इतने प्रदेशसे नहीं जानता है, ऐसा भेद नहीं पडता। सर्व प्रदेशसे, सर्वांग वेदन होता है। अमुक प्रदेशमें वेदन होता है और अमुकमें नहीं होता है, ऐसा नहीं है। सर्वांगसे वेदन होता है और सर्वांगसे वह जानता है।
मुमुक्षुः- ज्ञान भी सर्वांगसे...?
समाधानः- ज्ञान भी सर्वांगसे और वेदन भी सर्वांगसे। थोडा वेदन है और थोडे प्रदेशमें नहीं है, या थोडेमें ज्ञान है और थोडेमें नहीं है, ऐसा नहीं है। सर्वांगसे ज्ञान और सर्वांगसे वेदन है। परन्तु वह वेदन प्रत्यक्ष है। केवलज्ञानीका ज्ञान प्रत्यक्ष है।