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समाधानः- संपूर्ण प्रत्यक्ष है।
मुमुक्षुः- अन्दरमें शान्तिकी धारा चलती है। प्रचुर आनन्द कहते हैं, प्रचुर आनन्द। वह प्रचुर कितना? माप क्या?
समाधानः- बारंबार क्षण-क्षणमें अंतर आत्मामें जाता है न। शुद्धउपयोगकी धारा बारंबार प्रगट होती है। बाहर आता है और अंतरमें जाता है। अंतर्मुहूर्त-अंतर्मुहूर्तमें अन्दर जाता है और अंतर्मुहूर्तमें बाहर आता है, अंतर्मुहूर्तमें अंतरमें जाते हैं। अतः प्रचुर स्वसंवेदन है। बारंबार.. बारंबार.. बारंबार.. बारंबार अंतरमें जाते हैं। और कषाय तो बिलकुल अल्प हो गये हैं। संज्वलन एकदम पतला हो गया है। वीतराग दशा वृद्धिगत हो गयी है। वीतराग दशा वृद्धिगत हो गयी है इसलिये आनन्द भी बढ गया है।
मुमुक्षुः- प्रचुर हो गया है।
समाधानः- प्रचुर हो गया है। बार-बार अंतरमें जाते हैं और वीतराग दशा एकदम बढ गयी है। इसलिये आनन्द प्रचुर स्वसंवेदन है।
मुमुक्षुः- गुरुदेव तो चले गये, अब गुरुदेवकी बहुत याद आती है, हमें क्या करना?
समाधानः- याद आये तो गुरुदेवने जो मार्ग बताया, उस मार्गको ग्रहण करके उसका अभ्यास करना। गुरुदेवने जो कहा है, उसे याद करना। मार्ग बताया, अंतरमें दृष्टि करनेका। उसे अन्दर पीघलाना, उसका विचार करना, उसका अभ्यास करना। वह करने जैसा है। जो गुरुदेवने कहा वही करने जैसा है।
मुमुक्षुः- बहुत-बहुत धन्यवाद। आपने बहुत कृपा करके बहुत अच्छा माल दिया।
समाधानः- (गुरुदेवने) मार्ग बताया है।
मुमुक्षुः- बहुत बताया है, बहुत बताया है। बहुत स्पष्टता की है।
समाधानः- एकदम स्पष्ट करके खुल्ला कर दिया है। सब क्रियाकाण्डमें और शुभभावसे धर्म मानते थे। उसमें एकदम अंतर दृष्टि और द्रव्यदृष्टि बता दी, स्वानुभूति बतायी। और बरसों तक वाणी बरसायी।
मुमुक्षुः- बराबर है, बराबर है।
समाधानः- तीर्थंकर जैसा काम इस पंचमकालमें किया। द्रव्य-गुण-पर्यायकी किसीको शंका नहीं रही, ऐसा किया है।
मुमुक्षुः- कुछ बाकी नहीं रखा। लिखा है न? मांगमें तेल भरे, एक-एक मांगमें ऐसे एक-एक पहलू स्पष्ट किये हैं।
समाधानः- सब पहलू खुल्ले किये।
मुमुक्षुः- सबका काम बहुत जल्द हो जायगा।