Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

१४६ सकते हैं या समझ सकते हैं?

समाधानः- कोई दृष्टान्तसे समझायी नहीं जाती। क्योंकि वह अतीन्द्रिय है। उसमें इन्द्रियोंका आश्रय नहीं है। स्वयं अपने आश्रयसे प्रगट होती है। जो सुखका धाम है, स्वतःसिद्ध वस्तु है उसमेंसे आनन्द प्रगट होता है। उसे जगतकी कोई वस्तुके साथ मेल नहीं है। क्योंकि ये पदार्थ जड हैं, विपरीत स्वभाव है, विभावभाव भी विपरीत है। इसलिये उसका किसीके साथ मेल नहीं है। इन्द्रका इन्द्रासन, देवलोक है वह सब भी विभावस्वभाव है, विभावका फल है। फिर पुण्यके जितने भी प्रकार हैं, उन्हें शुद्धात्माके साथ मेल नहीं है। अतः उसकी कोई उपमा नहीं है। जैसे विष और अमृत बिलकूल भिन्न हैं, वैसे यह भिन्न ही है।

... आत्माकी महिमा और स्वाध्याय आदि करने जैसा है। अनन्त कालमें जीवने सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं किया है, ऐसा शास्त्रमें आता है। बाकी सब प्राप्त हो गया है। एक जिनवर स्वामी और सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं किया है। परन्तु जिनवर स्वामी मिले हैं, लेकिन स्वयंने पहचाना नहीं है। इसलिये वे भी नहीं मिले हैं, ऐसा कहनेमें आता है। और सम्यग्दर्शन कोई अपूर्व वस्तु है, उसे प्राप्त नहीं की। बाकी सब जगतमें प्राप्त हो गया है। इसलिये यह एक अपूर्व है। इसलिये उस अपूर्वताका पुरुषार्थ करना वही जीवनका कर्तव्य है।

मुमुक्षुः- वास्तवमें हितकी बात है, वैसा करने जैसा है।

समाधानः- विस्तार कर-करके मार्गको एकदम स्पष्ट कर दिया है। किसीकी कहीं भूल न रहे, इतना मार्ग स्पष्ट किया है। पुरुषार्थ करना अपने हाथमें है। अपने पुरुषार्थकी मन्दतासे स्वयं रुका है।

मुमुक्षुः- बहुत स्पष्टीकरण हुआ, इस कालमें गुरुदेव द्वारा बहुत स्पष्टीकरण हुआ। ऐसा योग मिलने पर भी सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति नहीं हुयी और यहाँसे देह छूट गया तो जीवका कहीं भी गूम जाना होगा, यह बराबर है?

समाधानः- सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति नहीं हुयी, परन्तु यदि उसका अभ्यास स्वयं (करता हो), उसकी भावना गहरी हो और अंतरकी गहराईसे स्वयंको यथार्थ लगन लगी हो तो कहीं भी जाय तो भी उसे पुरुषार्थ हो सकता है। ऐसा अवकाश रहता है। परन्तु यदि गहरे संस्कार न हो तो वह भूल जाता है। बाकी उसके संस्कार गहरे हो, तीव्र भावना हो कि मुझे आत्मा ही चाहिये, ऐसी भावना हो तो वह कहीं भी जाय वहाँ प्रगट होनेका, पुरुषार्थका अवकाश रहता है।

मुमुक्षुः- गहरे संस्कार किसे कहते हैं? गहरे संस्कार अर्थात..?

समाधानः- मुझे ज्ञायक आत्मा चाहिये और कुछ नहीं चाहिये। ऐसी तीव्र भावना