अन्दर रहती हो कि एक आत्मा सुखका धाम, आनन्दका धाम, एक ज्ञायक आत्मा (ही चाहिये)। विकल्पकी जाल कुछ नहीं चाहिये। एक चैतन्य निर्विकल्प तत्त्व जो महिमासे भरा है, वही चाहिये, दूसरा कुछ नहीं चाहिये। ऐसी गहरी रुचि यदि अन्दरमें हो और उसके बिना चैन नहीं पडता हो, वह कहीं भी स्फूरित हुए बिना नहीं रहते। उसे बाह्य साधन प्राप्त हो जाते हैं और उसका पुरुषार्थ भी जागृत हो जाता है। ऐसे संस्कार अन्दरमें हो तो।
मुमुक्षुः- ऐसे संस्कार लेकर जीव कदाचित अन्य गतिमें जाय तो ऐसे निमित्त प्राप्त हो सकते हैं।
समाधानः- प्राप्त हो जाते हैैं। अपनी भावना अनुसार जगत तैयार ही होता है। भावना गहरी न हो वह अलग बात है। अपनी भावना गहरी हो तो जगत तैयारी ही होता है।
मुमुक्षुः- अपने उपादानकी तैयारी हो तो निमित्त कहींसे भी हाजिर हो जाता है।
समाधानः- निमित्त हाजिर हो जाता है। ऐसा निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है।