Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 147.

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ट्रेक-
ट्रेक-१४७ (audio) (View topics)

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ट्रेक-१४७

समाधानः- गुरुदेव तो महान एक तीर्थंकर जैसा काम किया। वह तो तीर्थंकरका द्रव्य था। गुरुदेवने कोई अपूर्व मार्ग बताया है। जीव कहाँ थे और कहाँ रख दिये हैं। कोई क्रियामें और शुभभावमें धर्म मानते थे। उसके बजाय अंतर दृष्टि करनेका गुरुदेवने सीखाया है।

मुमुक्षुः- भेदज्ञानका विषय कहीं सुनने नहीं मिलता था। वह अपने समक्ष लाये।

समाधानः- समक्ष लाये, कितना सरल स्पष्ट कर दिया है। जा सकते हैं, देवमें तो जानेकी शक्ति होती है। देव तो भगवानके समवसरणमें जाते हैं। .. जाते हैं, मन्दिरोंमें जाते हैं, देव सब जगह जाते हैं।

मुमुक्षुः- गुरुदेवका विरह हमें सताता है। यहाँ आते हैं, उनकी गुँज सुनायी देती है, फोटोके समक्ष जाते हैं तो लगता है कि सिंहनाद गुँजता था।

समाधानः- गुरुदेवका विरह तो सबको लगता है, परन्तु कुुदरतके आगे कहाँ (चलती है)? ऐसा द्रव्य जगतमें शाश्वत रहे, शाश्वत बिराजे ऐसी सबको भावना हो परन्तु कुदरतके आगे कोई उपाय नहीं है। सबको गुरुदेवका विरह तो लगाता है। गुरुदेव तो गुरुदेव थे।

मुमुक्षुः- हाँ जी, मार्ग तो वे ही दर्शा रहे हैं।

समाधानः- मार्ग तो गुरुदेव दर्शा रहे हैं। मुख्य तो गुरुदेव ही सब मार्ग दर्शा रहे हैं। चारों ओर प्रचार (हुआ है)।

मुमुक्षुः- अध्यात्मका प्रवाह चारों ओर पहुँचा है। गुरुदेवका और आपका महान उपकार है।

समाधानः- ... अन्दर पुरुषार्थ कैसे करना? सबको एक ही प्रश्न उत्पन्न होता है। बहुत कहा है, स्पष्ट किया है। कहीं किसीको प्रश्न उत्पन्न हो ऐसा नहीं है, इतना स्पष्ट कर दिया है।

मुमुक्षुः- जब सम्यग्दर्शनका विषय द्रव्यदृष्टि करनेमें आती है, तब पर्याय द्रव्यसे भिन्न है, ऐसा कहनेमें आया। तो द्रव्य और पर्यायकी जो भिन्नता है, इस विषयमें गुरुदेवका कहनेका आशय क्या है? यह हमें विस्तारसे समझाइये।