होता है और उसका वेदन होता है। द्रव्यकी ही वह पर्याय है परन्तु क्षणिक है। इसलिये भिन्न या अभिन्न जैसे ज्ञानकी अपेक्षामें समझमें आये ऐसा है। ... पर्याय है। द्रव्यके आश्रय बिना नहीं होती है, ऊपर-ऊपर नहीं होती है। द्रव्यका स्वभाव है, द्रव्यकी पर्याय है। क्षणिक है, इसलिये द्रव्य सामान्य है उससे उसका स्वभाव थोडा अलग है। क्षणिक है।
मुमुक्षुः- ... कोई भी बात कही हो, परन्तु गौण करवानेके लिये बात कही है।
समाधानः- गौण करनेके लिये, निकाल देनेकी बात नहीं है। दृष्टिके जोरमें निकाल दी, ऐसी बात भी आये, परन्तु उसे समझना चाहिये। जैसे राग जड है ऐसा कहनेमें आता है, परन्तु राग जड है ऐसा ही मान ले तो विभाव ही नहीं है, ऐसा अर्थ हो जाय न। राग जड है। वह अपना स्वभाव नहीं है, इसलिये उसे जड कहनेमें आता है। तो फिर पुरुषार्थ किस बातका, बिलकूल जड हो तो? स्वयंका स्वभाव नहीं है।
... भिन्न, परन्तु वह द्रव्यके आश्रयसे होती है। जैसा द्रव्य स्वतंत्र स्वतःसिद्ध है, वैसे पर्याय स्वतःसिद्ध द्रव्यके आश्रय बिना है, ऐसी उसमें अपेक्षा नहीं आती है। द्रव्यके आश्रयसे ही पर्याय होती है। .. उसके भिन्न नहीं है। जैसे एक द्रव्यसे दूसरे द्रव्यके भिन्न है, ऐसे एक द्रव्यसे पर्यायके (कारक) उस प्रकारसे भिन्न नहीं है। उसे तो द्रव्यका आश्रय है।
मुमुक्षुः- उस प्रकारसे भिन्न नहीं है।
मुमुक्षुः- हाँ, मर्यादा बाहर (नहीं है)। अपनी-अपनी मर्यादा तो है।
समाधानः- उसे द्रव्यका आश्रय है। उसका-पर्यायका स्वभाव अलग है इसलिये उसके कारक भिन्न है, ऐसे। द्रव्यके आश्रयसे, जैसा द्रव्य होता है उस जातकी उसकी पर्याय होती है। उसमें तो दो द्रव्य स्वतंत्र हैं, बिलकूल स्वतंत्र हैैं। जैसे दो द्रव्य स्वतंत्र हैं, वैसे पर्याय और द्रव्य उस प्रकारसे स्वतंत्र नहीं हैं। जैसी द्रव्यकी दृष्टि होती है, उस प्रकारकी पर्याय होती है। दृष्टि द्रव्य पर जाय तो पर्याय वैसी होती है।
मुमुक्षुः- .. पर्यायको द्रव्यका आश्रय है।
समाधानः- पर्यायको द्रव्यका आश्रय है। .. लेकिन उसमें एक जातका नहीं है, इसलिये एक भी बात बिना अपेक्षासे नक्की नहीं होगी। भिन्न है? अभिन्न है? भिन्न है? अभिन्न है? एकान्त नहीं है, अतः वैसे वह निश्चित नहीं होगा, उसमें अपेक्षा आती है।
.. सबने बहुत सुना है। गुरुदेव तो मूसलाधार वाणी बरसा गये हैं। कहीं किसीको कोई प्रश्न न रहे, ऐसा चारों ओरसे गुरुदेवने स्पष्ट किया है। बहुत दर्शाया है। आत्माको ज्ञायकको पहिचानना। शरीर और विभावपर्याय उसका स्वभाव नहीं है। उससे भिन्न जाननेका