मुमुक्षुः- .... शुरूआत हुयी, ... टूटी इसलिये सबको ख्याल आ गया। अतः बसमेंसे हम सब खडे हो गये। मैं ऐसे ही बैठा रहा। मैंने कहा, इतने लोग इस पर्यायको बदलनेकी कोशिष कर रहे हैं। ड्राईवरने बहुत कोशिष की। बसमेंसे किसीकी इच्छा नहीं थी। अभी वही विचार कर रहा था, पर्याय इतनी स्वतंत्ररूपसे परिणमित हो रही है और इतने लोग उस पर्यायको बदलनेकी कोशिष कर रहे हैैं। वही विचार कर रहा था, उस विचारमें बस कब गिर गयी और कब गोते खाने लगी, उस वक्त मुझे कुछ भान नहीं रहा कि बस अब गिर गयी है। हाथमें पकड रखा था। अभी तो वही विचार कर रहा था, विचार करता हूँ, इस पर्यायको बदलनेके लिये इतने लोग कोशिष कर रहे हैं। कोई इच्छते नहीं है। और इतनी स्वतंत्ररूपसे पर्याय परिणमती है। यही विचार कर रहा हूँ, मैंने खाई नहीं देखी, गिरते समय कोई सदमा नहीं लगा। उस वक्त मुझे किसी भी प्रकारका विकल्प नहीं था। बादमें तो बस गोते खाने लगी। उसके बाद सब विस्मृत हो गया, बादमें तो सब विस्मृत हो गया। फिर तो ऐसा होने लगा कि अब बस कब बन्द होगी, कब खडी रह जाय, कब गोते खाना बन्द होगा? वह सब विकल्प चलने लगे। उस वक्त यह नया निकला कि अब बन्द हो, बन्द हो, बन्द हो। अटके, अटके, अटके, गोते खाना अटके, अटके, अटके। वह विकल्प बसमें चलता था।
समाधानः- कैसे बचना ऐसा सब (सोचने लगे)।
मुमुक्षुः- इस हाथमें दो हड्डी टूट गयी।
मुमुक्षुः- मैंने जोरसे पकड लिया था। परन्तु दो-तीन बार पलटी खाई तो हाथके टूकडे हो गये।
मुमुक्षुः- दो टूकडे। दोनों। फोटो बताया, दोनों हाथ बिलकूल अलग। मुमुक्षुः- फिर तो मैं भी बसके अन्दर आकाशमें गोल-गोल उडने लगा। इतनी वेदना थी, फिर भी मैं अन्दरमें ज्ञायककी ओर मुडनेका विचार करुं कि मैं इसमें रह सकू, इसमें रह सकू। लेकिन उतनी वेदना थी कि विकल्पमें ही चड जाना होता था।
समाधानः- उतनी वेदनाका प्रसंग था।
मुमुक्षुः- हम यहाँसे कलकत्ता जाना है, कलकत्तासे फिर प्लेनमें इम्फाल जाना है। फिर इम्फालसे ...
समाधानः- अस्पतालमें वहाँ ले गये होंगे। गुरुदेवने बताया है वही सबको शान्ति देता है। गुरुदेवने सबको तैयार कर दिये हैं। वास्तवमें गुरुदेवका परम उपकार है। उस वक्त ज्ञायकका स्मरण हो, वह सब गुरुदेवका उपकार है। गुरुदेवका उपकार है।
मुमुक्षुः- घर भी याद नहीं आया। कोई भी विकल्प उस वक्त मुझे नहीं था।