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थे कि त्रिलोकीनाथने टीका लगाया, फिर और क्या चाहिये? हीराभाईके बंगलेमें गुरुदेव थे। (संवत) १९९३ वर्षमें। प्रवचनमें तो जिसे ख्याल हो उसे मालूम पडे। बाकी गुरुदेव बाहर कुछ नहीं बोलते थे। पहले तो बहुत ही गुप्त था। प्रवचनमें आती थी, जिसे मालूम हो उसे ख्याल आता था कि इस अर्थमें बोलते हैं। ... वे स्वयं कहते थे, तीर्थंकर हूँ। मुझे कुछ मालूम नहीं था। वे मानते हैं, ऐसा मुझे भी नहीं मालूम था कि गुरुदेव स्वयंको क्या मानते हैं।
मुझे ऐसा लगता था कि ये महापुरुष है। परन्तु ये तीर्थंकर होंगे, ऐसा मेरे दिमागमें भी नहीं था। मुझे जो आया वह गुरुदेवको कहते-कहते ऐसा लगता था कि मैं यह कहती हूँ, परन्तु गुरुदेवको क्या लगेगा? मैंने तो हिम्मत करके कहा (तो) गुरुदेवको एकदम प्रमोद आया। क्योंकि वे स्वयं तो अन्दर मानते थे। वे मानते हैं, यह मुझे मालूम भी नहीं था।
मुमुक्षुः- फिर बातका मेल हो गया।
समाधानः- हाँ, मेल हो गया। गुरुदेवने बादमें (कहा), मैं तीर्थंकर हूँ और मुझे आभास (होता है), वह सब बात की। बादमें कहा।
मुमुक्षुः- बादमें कहा।
समाधानः- बादमें। .. तीन बार ॐ आया।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- मैं तीर्थंकर हूँ, ऐसा मुझे कुछ अन्दरसे भास होता है। ऐसा गुरुदेव कहते थे। और राजकुमारका तो गुरुदेवको स्वप्न आया था, दीक्षा लेनेके बाद। मैं राजकुमार हूँ, बडा शरीर है। यहाँका शरीर नहीं, वह शरीर अलग था, ऐसा कहते थे। पघडी, झरीके कपडे आदि सब।
सीमंधर भगवानने कहा कि यह राजकुमार तीर्थंकर होनेवाले हैं। .. भविष्यमें तीर्थंकर होनेवाले हैं। सीमंधर भगवानकी वाणीमें आया है कि यह राजकुमार भविष्यमें तीर्थंकर होनेवाले हैं।
मुमुक्षुः- माताजीने साक्षात सुना है।
समाधानः- भगवानका समवसरण अलग, भगवान भी अलग, वाणी भी अलग और सुननेवाले सब देव, देवियाँ, गणधर, मुनि, सभा, राजा-रानियाँ, अर्जिका, लाखो श्रावक, श्राविका, वह सभा ही अलग और वह उत्साह भी अलग। ये राजकुमार तो तीर्थंकर हैं। ऐसे राजकुमार .. ये राजकुमार! ये तो तीर्थंकर हैं। भगवाननी वाणी आदि सबका मेल हो गया। भगवानकी वाणीमें आया कि ये तो तीर्थंकर होनेवाले हैं।
गुरुदेवकी गंभीरता। पहले गंभीर, गुप्त रहता था। दो शब्द भी बाहर नहीं आते