Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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९८अमृत वाणी (भाग-४)

मुमुक्षुः- डाक्टरकी भी इजाजत नहीं ली। डाक्टरकी इजाजत लेने जायेंगे तो ना बोलेंगे। मुझे अहेमदाबादमें रहना ही नहीं है। बीस दिन अहेमदाबादमें रहे। बुखार नहीं उतरा। डाक्टरके पास गये। दस दिनकी दवाई लेकर वापस आना। मैंने कहा, अब जल्दी सोनगढ चले जाना है। यहाँ तो टेप भी सुनने मिले, पूरा दिन सत्समागममें रहना हो, ...

ममुक्षुः- ... तुरन्त ही। सुबह, शाम, दोपहर। इसलिये इतनी शान्ति होती है। कहीं सुनने नहीं मिलता। यहाँसे निकलनेके बाद पूरी दुनियामें कहीं सुनने नहीं मिलता। यहाँ सोनगढ आये तभी शान्ति होती है। एक टेप सुन ली तो भी इतनी शान्ति होती है।

समाधानः- शान्ति होती है, मानों साक्षात गुरुदेव बोल रहे हैं। ... देनेवाले गुरुदेव ही है।

मुमुक्षुः- कहाँ भटकते होते।

समाधानः- गुरुदेवने तो अपूर्व मार्ग बताया है। कहींके कहीं जीव अटक गये हैं बहारमें। अंतर दृष्टि करके... सुखका धाम, आनन्दका धाम आत्मा शाश्वत है। आत्मा ज्ञानसे भरा है, सब गुरुदेवने बताया। तू अदभूत तत्त्व है। तेरेमें अद्भुतता है, बाहर कहीं नहीं है। सब स्वरूप गुरुदेवने बताया। और आत्माका ही अद्भुतता महिमा करने जैसी है। दूसरा कुछ नहीं है, संसार निःसार है। सारभूत तत्त्व आत्मा ही है।

चत्तारी मंगलं, अरिहंता मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपणत्तो धम्मो मंगलं। चत्तारी लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपणत्तो धम्मो लोगुत्तमा।

चत्तारी शरणं पवज्जामि, अरिहंता शरणं पवज्जामि, सिद्धा शरणं पवज्जामि, केवली पणत्तो धम्मो शरणं पवज्जामि।

चार शरण, चार मंगल, चार उत्तम करे जे, भवसागरथी तरे ते सकळ कर्मनो आणे अंत। मोक्ष तणा सुख ले अनंत, भाव धरीने जे गुण गाये, ते जीव तरीने मुक्तिए जाय। संसारमांही शरण चार, अवर शरण नहीं कोई। जे नर-नारी आदरे तेने अक्षय अविचल पद होय। अंगूठे अमृत वरसे लब्धि तणा भण्डार। गुरु गौतमने समरीए तो सदाय मनवांछित फल दाता।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!