Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

१५२ है। आत्मा सुखका कारण है। ऐसा निश्चय करके, ऐसा जानकर उससे जीव निवर्तन करता है। निवृत्त होता है।

अन्दसे वास्तविक ज्ञान दशा प्रगट हुई कह कहनेमें आये? कि आस्रवकी निवृत्ति हो तो। आस्रवकी निवृत्ति न हो तो उसे ज्ञानदशा प्रगट ही नहीं हुयी। एकत्वबुद्धि टले नहीं तो उसे ज्ञानदशा प्रगट ही नहीं हुयी है। यदि स्वयंकी स्वभावकी प्रवृत्ति हो और विभावकी निवृत्ति हो अर्थात उसका भेदज्ञान हो, आंशिक निवृत्ति हो, अल्प अस्थिरता रहती है, तो उसे वास्तविक आस्रवोंकी निवृत्ति आयी (और) स्वभावकी प्रवृत्ति हुयी। तो उसे ज्ञानका अंश प्रगट हुआ, ज्ञानदशा प्रगट हुयी।

अज्ञानदशामें तो कर्ता-कर्मकी प्रवृत्ति, एकत्वबुद्धि है उसमें कर्ता-कर्मकी प्रवृत्ति है। स्वभावभूत क्रिया प्रगट हुयी। स्वभावका कर्ता, स्वभावकी क्रिया। वह तो विभावकी क्रिया है। कर्ता और विभावकी क्रिया थी। आचार्य तो इतना गंभीर शब्द रखते हैं..। ... प्रगट होती है। क्षयोपशमज्ञानका जो खण्ड पडे, उसके जो विशेष हो, उसे भी तोडकर अखण्ड पर दृष्टि करता है। अखण्ड ज्ञान प्रगट होता है। मैं अखण्ड ज्ञायक ही हूँ। उसमें मति, श्रुतका भेद, क्षयोपशमके विशेष उसमें गौण है। उस पर दृष्टि नहीं रहती।

वह आता है-परपरिणतिको तोड देता है, भेदके कथन जिसमें छूट जाते हैं। क्षयोपशमके विशेष, उस परसे दृष्टि छूटकर स्वभावकी ओर जाती है। अखण्ड एक आत्मा प्रचण्ड ज्ञान प्रगट होता है। बलवान, स्वयं पुरुषार्थ करके... उसमें था... आत्मामें प्रचण्ड ज्ञान प्रगट होता है-उदय होता है। परपरिणतिको तोड देता है। राग-ओर जो परिणति जाती थी, वह टूट जाती है। स्वभावकी परिणति प्रगट होती है। भेद.. भेद.. भेद.. पर जो दृष्टि जाती थी, वह दृष्टि टूटकर स्वभावकी अनुभूति हुयी। स्वभावकी ओर परिणति दौड गयी। इसलिये उसमें विशेष खण्ड पडते थे, वह खण्ड खण्ड रहा नहीं और अखण्ड ज्ञान प्रगट हुआ।

अभी पूर्ण होनेमें तो देर है। ऐसा ... पहले प्रगट हो, तब उसे सच्चा ज्ञान प्रगट हो। स्वानुभूतियुक्त। उसमें ज्ञानकी परिणति प्रगट हो, अखण्ड उद्योरूप अखण्ड एक प्रचण्ड ज्ञान प्रगट होता है अभेद, जिसमें भेदके कथन भी नहीं है। भेद पर दृष्टि भी नहीं है। ऐसा ज्ञान प्रगट हुआ। उसमें कर्ता, क्रिया, कर्मकी प्रवृत्ति कहाँ खडी रहे? स्वभावकी प्रवृत्तिके आगे विभावकी प्रवृत्ति तो कहीं दूर भाग जाती है। विभाव प्रवृत्ति तो अल्प हो जाती है। उसकी एकत्वबुद्धि टूट गयी इसलिये विभावकी प्रवृत्ति भी टूट गयी। उसमें आखीरमें ऐसा कहते हैं। आस्रवसे निवृत्त हो गया। अनन्त गया इसलिये निवृत्त ही हो गया, ऐसा कहते हैं। दृष्टि-सम्यग्दर्शनके हिसाबसे निवृत्त हो गया। अल्प रहता है,