Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 153.

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११४अमृत वाणी (भाग-४)
ट्रेक-१५३ (audio) (View topics)

समाधानः- .. चालू रहे। स्वरूप मन्दिर देखने जैसा है। वह सब अलग-अलग भाषामें बहुत आता था। विभावके देशमेंसे अंतरमें जाना है। ... मैं तो स्वरूपमें जा रहा हूँ। कोई विभाव वहाँ तुम्हारी कुछ नहीं चलेगी। उन दिनोंमें ऐसा आता था। निर्णय पूरा है, वांचन उतना, चिंतवन उतना करते हैं, गुरुदेवने कहा बराबर है, उसका चिंतवन भी उतना करते हैं, तो भी क्यों नहीं होता है? जो निर्णय है उस अनुसार कार्य नहीं करता है तो नहीं होता है। क्यों नहीं होता है?

उतना निर्णय है, चिंतवन उतना करते हैं। एकान्तमें ऊपर बैठते हो न। इसलिये ये करते हैं, वह करते हैं, तो भी क्यों नहीं हो रहा है? तो भी उपयोग क्यों बाहर जाता है? उपयोग तो बाहर जाये। उपयोग तो अंतर्मुहूर्त-अंतर्मुहूर्तमें बदल जाता है। वहाँ स्कूलमें पढने जाता है, यह ज्ञायककी स्कूल अलग प्रकारकी है। बाहर एक, दो आदि, यहाँ अंतरमें जाकर इस स्कूलमें पढने जैसा है। शास्त्र अभ्यास करे वह अलग, परन्तु अंतरमें ज्ञायकका अभ्यास करना वह अलग है।

उसमें सब स्टेज आते हैं। एक, दो, फिर ऊपर, प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पाँचवी आदि। उसमें भाषा अलग, अंग्रेजी आदि। इसमें भी ऐसा है। जिज्ञासाकी भूमिका, सम्यग्दर्शनकी, मुनिदशा। उस स्कूलमें पढने जैसा है। तो वास्तवमें पढा कहनेमें आये। जो भी भाई आये, कोई भी आये, कैसे करना? हो नहीं रहा है। अरे..! स्वयंकी क्षति है। नहीं हो रहा है उसका कारण क्या? कारण स्वयंका है। इस स्कूलका अभ्यास कर। लौकिकमें तो एक अंकको बार-बार घोंटता रहता है। वैसे ज्ञायकका घूंटन करता रह न। स्वभावका घूंटन करना नहीं है और विभावको रखना है, विभावको खडा रखना है। निज स्वभावका अभ्यास कर।

गुरुदेवने एक अंकका घूंटन करवाया। गुरुदेवने बारंबार उसका अभ्यास करवाया है। गुरुदेवने अभ्यास करवाया, परन्तु अंतरमें स्वयं अभ्यास नहीं करता है। ऊपर-ऊपरसे समझ लेता है। .. आये नहीं तो कितना अभ्यास करता है। इसके अभ्यासमें थक जाता है। उसे कुछ मालूम नहीं पडता है कि अन्दर अरूपी भावमें क्या हो रहा है। इतना करते हैं, इतना करते हैं, तो भी कुछ फल नहीं आता है, ऐसा कहते हैं।