Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-
ट्रेक-१५३

१५३ इतना निर्णय पूरा है, इतना चिंतवन करते हैं तो भी कुछ नहीं होता है। सूक्ष्म परिणति प्रगट कर तो होता है।

कार्य करता नहीं है। जो जाना है उस रूप परिणतिको पलटता नहीं है, एकत्वबुद्धि तोडता नहीं है, कहाँ-से हो? रोज जो भी आये वह ऐसा ही कहता है। स्वयं करे तब ही होनेवाला है। स्वभाव था वह प्रगट हुआ, स्वभावरूप परिणमन प्रगट हुआ। इसलिये स्थिरता बढ गयी है। अन्दर ज्ञायकका अभ्यास कर और उसमेंसे जो फल आये तो तेरी परीक्षा सच्ची होगी। .. अंतरमें जा तो उसमेंसे फल आये वह सच्चा है। उपयोग तो बाहर आ जाय।

गुरुदेव कहते थे न? कि भक्तिमें आता है, आप तो समय-सयमें बदल जाते हों और मैं तो अंतर्मुहूर्तमें बदलता हूँ। भगवानको उलहना देते हैं। भक्तिमें आता है, ऐसा गुरुदेव कहते थे। अभी टेपमें आया था। प्रभु! मेरा मन तो चपल स्वभावी तो अंतर्मुहूर्तमें पलटता है और आप तो स्थिर कहलाते हो और समय-समयमें बदल जाते हो, ऐसा कहते हैं। चैतन्यकी परिणतिमें स्थिर हो गये तो हम तो एक अंतर्मुहूर्त भी टिकते हैं, जो भाव आये उसमें अंतर्मुहूर्त स्थिर रहते हैं और आप तो अंतर्मुहूर्त भी स्थिर नहीं रहते हो, एक समयमें बदल जाते हो। ऐसा उलहना देते हैं।

हमारी परिणति तो चपल और अस्थिर है, वह तो अंतर्मुहूर्तमें बदलती है। आप तो एक समयमें बदल जाते हो। उसका क्या हो? भगवान तो स्थिर है। भगवानने तो स्वभाव प्रगट किया है। वे बदलते नहीं है, एकरूप है। उसकी परिणतिका स्वभाव है, समय-समयमें बदल जाती है। कैसे मेल करना? मैं आपका भक्त। आपके साथ क्या...? भगवान बदलते नहीं है, भगवान तो एकरूप द्रव्यको ग्रहण करके ज्ञानकी परिणति लोकालोक जानती है। उत्पाद-व्यय और ध्रुव। ध्रुव तो ग्रहण कर लिया, ज्ञायक ग्रहण कर लिया और समय-समयकी परिणति आत्माका स्वभाव है। वह पलटती रही है। और ये तो अज्ञानदशामें उसका क्षयोपशमज्ञान अधूरा ज्ञान है, पूरा नहीं है। वह तो टिकता भी नहीं है। अंतर्मुहूर्तमें भागता है, पूरा स्थिर भी नहीं है। उसकी स्थिरता है ही कहाँ?

भगवान तो स्थिर बिंब आत्मामें हो गये हैं। स्वरूप परिणतिमें लीन हो गये हैं। उसमेंसे स्वभावपर्याय उनको प्रगट हुयी है। समय-समयमें बदलते नहीं है भगवान। एकरूप रहकर व्यय होता है। एकरूप परिणति रहे उसमें उनको पारिणामिकभावकी परिणति बदलती है। बदलते नहीं है, भगवान तीन कालका जानते हैं। एक परिणति आयी तो दूसरी पर्यायको वे चुकते नहीं, भूलते नहीं। इसका तो क्षयोपशमज्ञान है, वह तो भूल जाता है। एक क्षणमें जो जाना हो, वह दूसरी क्षण भूल जाता है। उसका बदलना तो अलग