Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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किया, इससे भिन्न किया। उसमें अपेक्षा होती है। पर्यायके भेद, शुद्धपर्यायको साधनेका पुरुषार्थ रहता है। द्रव्य पर दृष्टिके जोरमें सब सधता है। निर्मल पर्याय प्रगट करनेका तो पुरुषार्थ चालू है। दृष्टिकी अपेक्षासे भिन्न करता है, साधनामें उसका पुरुषार्थ करके साधता है और उस विभावको तो भिन्न करता है, निकाल देता है। इसे साधनेका प्रयत्न है। पर्यायको साधता नहीं है, परन्तु उसमें अपेक्षा आती है। द्रव्यदृष्टिके जोरमें ज्ञान, दर्शन, चारित्रको साधनेका पुरुषार्थ चालू है। वीतरागदशा।

मुमुक्षुः- दृष्टिका कार्य अलग प्रकारका और पुरुषार्थ करनेका कार्य साथमें चालू है।

समाधानः- दृष्टि और ज्ञान दोनों साथ होते हैं। पुरुषार्थ भी चलता है। एक भेदज्ञानकी धारामें सब आ जाता है। एक दृष्टि और ज्ञान। उसके साथ लीनताका पुरुषार्थ, सब साथमें रहते हैं। परस्पर सम्बन्ध वाले हैं। परस्पर एक-दूसरेसे विरुद्ध कार्य करनेवाले नहीं है। दृष्टिका जोर द्रव्य पर आता है, ज्ञान दोनोंका विवेक करता है। साथमें पुरुषार्थकी डोर चालू है। परस्पर एकदूसरेको किसीको तोडते नहीं, सब साथ रहते हैं।

मुमुक्षुः- विकल्प आये तो विकल्पको समानेके लिये क्या करना?

समाधानः- विकल्प छोडनेके लिये? समानेके लिये। सबका एक ही उपाय है, ज्ञायकको पहचाने तो विकल्प समाते हैं। शुद्धात्माको पहचाने कि मैं तो ज्ञायक हूँ। विकल्प मेरा स्वभाव नहीं है, मैं निर्विकल्प तत्त्व हूँ। यह विकल्प समानेका उपाय है। लेकिन ज्ञायकको यथार्थ पहचाने तो विकल्प समाते हैं। नहीं तो उसे अशुभभावमेंसे शुभभावमें पलट सकता है।

प्रथम जिज्ञासाकी भूमिकामें दूसरे विचारमेंसे तत्त्व विचारमें, देव-गुरु-शास्त्रमें आदिमें विचारको पलटता है। बाकी विकल्प वास्तविक रूपसे कब समाते हैं? पहले मन्द शुभभावरूप हो, वास्तविक कब छूटे? ज्ञायकको पहचाने तो। भेदज्ञान करे तो विकल्प समाते हैं। विकल्पसे भिन्न पडे तो विकल्प वास्तविक रूपसे छूटते हैं, भिन्न पडते हैं। वास्तवमें तो निर्विकल्प होता है, तब विकल्प छूट जाते हैं। बाकी भेदज्ञानकी धारामें विकल्प भिन्न पडते हैं, विकल्प मन्द हो जाते हैं। ज्ञायककी परिणति प्रगट करे तो। जबतक वह नहीं हो तबतक भावना करे कि, मैं ज्ञायक हूँ, विकल्प मेरा स्वभाव नहीं है, मैं उससे भिन्न हूँ। ऐसे बारंबार ज्ञायककी महिमा लाये, ज्ञायकका स्वभाव पहचानकर, मैं यह ज्ञायक हूँ, यह विकल्प मेरा स्वभाव नहीं है, इसप्रकार विकल्प समानेका उसका एक प्रयास चलता है। अशुभमेंसे शुभमें लाये, परन्तु वास्तविक रूपसे विकल्प उससे भिन्न पडते। ज्ञायकको पहचाननेका प्रयत्न करे तो वह विकल्प छूटनेका उपाय है, उससे भिन्न पडनेका उपाय है।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!