Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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११८अमृत वाणी (भाग-४)

जाता है। अनादि कालसे... स्वयंका है, ... तो स्वयं अपनी ओर कर्तापना अपनेमें, कर्म अपना, क्रिया अपनी वह नहीं करता है, और बाहरमें मानों मैं दूसरेका कर सकता हूँ। मैं दूसरेका सब कर सकता हूँ। दूसरेका सब कर सकता हूँ। कर नहीं सकता है और सकता हूँ ऐसा मानता है। स्वयं स्वयंका कर सकता है, परन्तु पूरा ऊलटा (हो गया है)। जूठी मान्यता, भ्रम बुद्धि हो गयी है।

बहुभाग तो क्रियामें रुकता है। कुछ धर्म करने जाय और क्रियामें (अटके)। उससे आगे जाय तो शुभभावमें अटकता है। परन्तु अंतरमें आना जीवको अत्यंत दुर्लभ हो जाता है। और कुछ रुचि हो तो पुरुषार्थ करना कठिन पडता है। ऐसा है। अभ्यास करता रहे। ऐसे करते-करते उसे अंतरमेंसे ज्ञाताधाराका कोई उग्र वेग आये तो पलटे। उग्रताके बिना होता नहीं। मन्द-मन्द पुरुषार्थसे (नहीं होता)। जोर करने जाय तो भी नहीं हो सकता। वह तो स्वयं अंतरसे पलटे तो हो ऐसा है। क्यों नहीं होता है? ऐसे हठ करने जाय तो भी हो सके ऐसा नहीं है। उपवास करना हो तो भोजन छोड दे। यह ऐसा नहीं है।

कहीं चैन पडे नहीं, तब स्वयंको खोजे न। चैन कहीं और पडता है, अतः स्वयंको खोजता नहीं। विचार कर-करके छोड देता है। आत्माका करना है। ऐसा विचार, विकल्प करके छोड देता है। छोड देता है, जैसा था वैसा करने लगता है। आत्माका करना है, ऐसा विचार आकर, भावना आकर छूट जाता है। अन्दर भावना रहा करे, परन्तु कहीं और चैन पड जाता है, अनादिका अभ्यास है इसलिये। उसीका आश्रय ले लेता है।

वह कहते हैं न? किसके आश्रयसे मुनिपना पालेंगे? शास्त्रमें आता है। आत्माके आश्रयसे पालते हैं। उसे स्वयंको स्वयंका आश्रय है, अन्यका आश्रय नहीं है। ऐसे स्वयं स्वयंका आश्रय लेना अन्दरमें सीखे। निराश्रय हो गये, अब कहाँ जायेंगे? आप शुभभाव, पंच महाव्रत सबके आश्रयकी ना कहो तो मुनिओंको शरण किसका? पंच महाव्रत आदि सबको आपने शुभभाव कहा। मुनि किसके आश्रयसे मुनिपना पालेंगे? मुनिने ये सब व्रत धारण किये हैं। तो कहते हैं, स्वयं स्वयंके आश्रयसे (हैं)। मुनि अशरण नहीं है। स्वयं स्वयंमें निरत रहते हैं। स्वयं स्वयं, चैतन्य चैतन्यका आश्रय लेता है।

आचार्यदेव कहते हैं, एक बार तू भिन्न होकर देख तो सही। उसका कौतूहली होकर अंतर्मुहूर्त भी अंतरमें देख तो सही। आत्माका आश्रय लेनेमें, दूसरा आश्रय छोडनेमें ही उसे ऐसा हो जाता है कि निराश्रय हो जाऊँगा, किसके आश्रयमें जाऊँ? अपना आश्रय लेनेमें भी उसे दिक्कत होती है। स्वयं स्वयंके आश्रये मुनिपना (पालते हैं)। मुनि किसके आश्रयसे मुनिपना पालेंगे? शुभभाव तो बीचमें आते हैं। आश्रय किसका? मुनिपना