Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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१२८अमृत वाणी (भाग-४)

मुमुक्षुः- जी हाँ, वही शैली थी।

समाधानः- वही शैली।

मुमुक्षुः- स्वभाव परिणति ही ली है।

समाधानः- स्वभाव परिणति प्रगट हुयी तो क्रमबद्ध। नहीं तो तून क्रमबद्ध जाना ही नहीं।

मुमुक्षुः- गुरुदेवकी शैली ऐसी ही आयी है।

समाधानः- जिज्ञासुकी बीचकी कोई बात ही नहीं। दो भाग।

मुमुक्षुः- आपने तो बहुत अच्छा स्पष्टीकरण किया, जिज्ञासाका। आपके वचनामृतमें भी बहुत बात जिज्ञासुकी स्वभाव परिणतिसे ही प्रवचनमें आयी है, बहुत बातें। भावना आदिकी बात है तो ज्ञानीकी भावना, ऐसे आयी है।

समाधानः- वे विभाग कर देते थे। बीचमें यहाँसे यहाँ, यहाँसे वहाँ प्रश्नोत्तर, वह बात ही नहीं। दो विभाग कर देते थे।

मुमुक्षुः- शुद्ध परिणतिका क्रम शुरू होता है, वही बात लेते थे।

समाधानः- बस, वही बात। यहाँ सब जिज्ञासाके प्रश्न करे इसलिये जिज्ञासुकी बात बीचमें (करते हैं)। ऐसा होता है। आचार्य, गुरुदेव सब शास्त्रमें समयसारमें दो भाग-एक पुदगल और एक आत्मा। बस। रागको यहाँ डाल दिया, स्वभावको इसमें डाल दिया।

मुमुक्षुः- रागको जडमें और पुदगलमें डाल देते थे। वहाँ तक कि उसके षटकारक उसकी पर्यायमें। पर्यायके षटकारक। आत्मा शुद्ध है। ... वह क्या आता है? पर्यायके षटकारक पर्यायमें? ऐसे तो वस्तुको छः कारकोंकी शक्ति है। उस प्रकारसे तो पूरा वस्तु दर्शन बराबर है। उसके छः गुण हैं, छः शक्ति है।

समाधानः- दो द्रव्य स्वतंत्र। इस द्रव्यके षटकारक इसमें और इस द्रव्यके इसमें। दो द्रव्यके षटकारक तो एकदम भिन्न स्वतंत्र हैं। फिर पर्याय एक अंश है। पर्याय अंशरूपसे भी स्वतंत्र है, ऐसा दर्शानेको उसके षटकारक कहे। परन्तु जितना द्रव्य स्वतंत्र है, उतनी पर्याय स्वतंत्र है, ऐसा उसका अर्थ नहीं है। उसी द्रव्यकी पर्याय है और उस द्रव्यके आश्रयसे वह पर्याय होती है। चेतनद्रव्यकी चेतन पर्याय। वह जो स्वभावपर्याय हो, वह उसकी पर्याय है। इसलिये दो द्रव्य जितने षटकारक रूपसे स्वतंत्र हैं, उसी द्रव्यकी पर्याय, वह द्रव्य और पर्याय उतने स्वतंत्र नहीं है। फिर भी एक अंश है और वह त्रिकाली द्रव्य शाश्वत है। अनादिअनन्त द्रव्य है और वह क्षणिक पर्याय है। परन्तु एक अंश है, इसलिये उसकी स्वतंता बतानेके लिये उसके षटकारक कहे। बाकी उसका अर्थ ऐसा नहीं है, वह द्रव्य जितना स्वतंत्र है, वैसी पर्याय (स्वतंत्र है)। पर्याय उतनी स्वतंत्र