१५६ बारंबर उसका मन्थन करते-करते मक्खन बाहर आये। वैसे स्व-ओरका अभ्यास करे तो निराला होनेका प्रयत्न हो। किसीको हो उसे अंतर्मुहूर्तमें होता है। न हो उसे देर लगती है, परन्तु उसका अभ्यास करता रहे, छोडे नहीं, उसमें थके नहीं, परन्तु बारंबार अभ्यास करे। उसकी आकुलता नहीं, धैर्यसे और भावना करके भी उस ओर अभ्यास करे तो होता है। बाकी चैतन्यद्रव्य तो अनादिअनन्त अनन्त शक्तिओंसे भरपूर है। उसमें उसकी एक भी शक्ति नहीं हुयी है। अनन्त काल हुआ तो भी शक्तियाँ परिपूर्ण हैं। परिपूर्ण शक्तिओंका भण्डार अनन्त महिमासे भरपूर है। अनन्त अदभूतता उसमें भरी है। ऐसा चैतन्यद्रव्य है। उसकी महिमा करके उस ओर जाय, उसका भेदज्ञान करे तो हुए बिना रहता ही नहीं।
मुमुक्षुः- मनमें एक प्रश्न यह उठता है कि उधर यदि देखभाल नहीं करेंगे तो कैसे काम चलेगा? दुकानका बिगाड हो जायगा, घर खराब हो जायगा, यह प्रश्न अन्दरमें बहुत चलता है।
समाधानः- वह तो अपना राग है, विकल्प है। जो होनेवाला होता है वह होता है। रागके कारण सब विकल्प आते हैं कि ये खराब हो जायगा। रागके कारण प्रयत्न होता है, बाकी जो होनेवाला है वही होता है। स्वयं पुरुषार्थ करे तो होगा, ऐसा नहीं होता। परन्तु अपने रागके कारण उसे विकल्प आते रहते हैं।
अनन्त काल हुआ। यह मनुष्यभव दुर्लभतासे मिलता है। उसमें इस पंचमकालमें ऐसे गुरुदेव मिले, ऐसा मार्ग बताया, ऐसा मार्ग बतलानेवाले कोई नहीं है। सब क्रियामें धर्म मानते थे, शुभभाव-पुण्यभावमें धर्म (मानते थे)। उसमें शुद्धात्मामें धर्म बतानेवाले गुरुदेव मिले। मनुष्यभवमें आत्मामें कुछ हो तो वह सफल है। मनुष्यजीवन चला जाय... मनुष्यभवमें ही उसके गहरे संस्कार बोये, भेदज्ञान करे, भिन्न आत्माको जाने तो सफल है। बाकी बाहरका चाहे जितना ध्यान रखे तो भी जो होनेवाला होता है वह होता है, अपने हाथकी बात नहीं है। कुछ भी करे तो भी होनेवाला है।
परन्तु यह चैतन्यद्रव्य तो अपने हाथकी बात है। पुरुषार्थ करे तो प्रगट हो ऐसा है। अपनी मन्दताके कारण अनन्त काल व्यतीत किया है। इसलिये ऐसा पुरुषार्थ, अन्दर अपनी महिमा लगकर उस ओर पुरुषार्थ करना चाहिये। अंतरमें सब भरा है। स्वघरमें अनन्त निधि भरी है। उसमें ज्ञान, दर्शन, चारित्र सब स्वमेंसे प्रगट होता है, परमेंसे नहीं आता है।
अनन्त ज्ञान, अनन्त शक्ति भरी है, अनन्त आनन्द भरा है। विकल्प टूटकर स्वानुभूति हो तो उसमेंसे अनन्त आनन्द प्रगट होता है। सब चैतन्यमेंसे प्रगट होता है, बाहरसे कुछ नहीं आता। बाहरका तो होनेवाला होता है वह होता है। इसलिये इस मनुष्य