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मुमुक्षुः- परिणतिके विषयमें आपसे सुनना है। वर्तमानमें देवलोकमें ...
समाधानः- गुरुदेव तो अभी देवलोकमें है। यहाँसे सब महान लेकर ही गये हैं। वहाँ भगवानके दर्शन मिले हैं, उनकी वाणी मिली है तो उनको तो विशेष अंतरमेंसे जो उन्हें चाहिये था, भगवानकी भावना थी, भगवानकी वाणी सुननेकी भाववा थी, उन्हें श्रुतज्ञानकी इतनी महिमा, सब उन्हें प्राप्त हो गया है। श्रुतज्ञानमें उन्हें विशेष पुष्टि मिले ऐसा सब उन्हें प्राप्त हो गया है। स्वयं अंतरमेंसे सब लेकर देवलोकमें गये हैं। भगवान मिले, योग मिला।
मुमुक्षुः- यहाँ सबके बीच अलग पड जाते थे, वैसे वहाँ भी होगा न?
समाधानः- उनकी परिणति अलग थी, अलग दृष्टिसे देखे तो अलग दिखाई दे। वह द्रव्य अलग था, ऐसा सब जानते हो कि ये कोई तीर्थंकरका द्रव्य है। उनकी परिणति निर्मल, उनकी निर्मल परिणतिको सब जान सकते हैं। देवोंमें तो सब जाननेकी बहुत शक्ति होती है कि ये तीर्थंकरका द्रव्य है, ये भविष्यके तीर्थंकर हैं, ऐसा जान सकते हैं। दूसरे देव भी जान सकते हैं। भविष्यके तीर्थंकर हैं, ऐसा सब जान सकते हैं। ये कोई अलग द्रव्य है। जाननेकी शक्ति होती है। ये भरतक्षेत्रमेंसे आये हैं। भगवानके पास थे। सब जान सकते हैं। भविष्यमें तीर्थंकर होनेवाले हैं, यह सब जान सकते हैं।
मुमुक्षुः- वर्तमान परिणति है, वह किसको सूचित करती है? उनके भूतकालकी या उनके भविष्यकी? कोई क्रोध करता हो तो पूर्वमें वह साँप था ऐसा कहा जायगा या भविष्यमें साँप होगा ऐसा कहा जायगा?
समाधानः- उसकी किस प्रकारकी पुरुषार्थकी गति है, उस पर (आधारित है)। बचपनमें हो तो दिखाई दे कि ये पूर्वसे कुछ लेकर आया है। वर्तमान अंतरमें ज्यादा जुडकर क्रोध करता हो तो ऐसा भी कहा जाय कि ये भविष्यमें ऐसा होगा। वह किस प्रकारका है वह उसका आत्मा जाने। भूतकालके संस्कारसे क्रोध आवे तो वह वर्तमानमें गलत प्रकारसे पुरुषार्थ करके वर्तमानमें क्रोधमें जुडता हो तो भविष्यका सूचक है। भूतकालका हो तो पूर्वका सूचक है। वर्तमानमें ज्यादा करता हो तो वह भविष्यका सूचक है। उसमें कुछ निश्चित नहीं होता है। वह तो लोग एक कल्पनासे कहते हैं कि ये क्रोधी है इसलिये ऐसा होगा। ये वर्तमानमें (इतना) क्रोध करता है, इसलिये भविष्यमें ऐसा होगा। कुछ निश्चितरूप नहीं होता, उसके परिणाम अंतरमें क्या काम करते हो। बचपनमें हो तो पूर्व भवका सूचक लगे। फिर तो जैसे-जैसे स्वयं अन्दर जुडता जाय तो भविष्यका भी होता जाय।
मुमुक्षुः- बहुत बार ऐसा होता है कि यह भाव नहीं करना है, तो भी वह