Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 29 : Aashravanu Swaroop (Bhavashrav Ane Dravyashravanu Swaroop).

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अथ गाथात्रयेणास्रवव्याख्यानं क्रियते तत्रादौ भावास्रवद्रव्यास्रवस्वरूपं सूचयति :
आसवदि जेण कम्मं परिणामेणप्पणो स विण्णेओ
भावासवो जिणुत्तो कम्मासवणं परो होदि ।।२९।।
आस्रवति येन कर्म्म परिणामेन आत्मनः सः विज्ञेयः
भावास्रवः जिनोक्तः कर्म्मास्रवणं परः भवति ।।२९।।
व्याख्या‘‘आसवदि जेण कम्मं परिणामेणप्पणो स विण्णेओ भावासवो’’ आस्रवति
कर्म येन परिणामेनात्मनः स विज्ञेयो भावास्रवः कर्मास्रवनिर्मूलनसमर्थशुद्धात्म-
भावनाप्रतिपक्षभूतेन येन परिणामेनास्रवति कर्म; कस्यात्मनः ? स्वस्य; स परिणामो भावास्रवो
विज्ञेयः
स च कथंभूतः ? ‘‘जिणुत्तो’’ जिनेन वीतरागसर्वज्ञेनोक्तः ‘‘कम्मासवणं परो
होदि’’ कर्मास्रवणं परो भवति, ज्ञानावरणादिद्रव्यकर्मणामास्रवणमागमनं परः पर इति
हवे, त्रण गाथाओ वडे आस्रव पदार्थनुं व्याख्यान करे छे. तेमां प्रथम भावास्रव
अने द्रव्यास्रवना स्वरूपनी सूचना करे छेः
गाथा २९
गाथार्थःआत्माना जे परिणामथी कर्मनो आस्रव थाय छे, तेने जिनेन्द्रे कहेल
भावास्रव जाणवो अने जे (ज्ञानावरणादि) कर्मोनो आस्रव छे, ते द्रव्यास्रव छे.
टीकाःआसवदि जेण कम्मं परिणामेणप्पणो स विण्णेओ भावासवाे’ आत्माना जे
परिणामथी कर्म आवे छे, तेने भावास्रव जाणवो. कर्मना आस्रवनो नाश करवामां समर्थ
एवी शुद्धात्मानी भावनाथी प्रतिपक्षभूत जे परिणामथी कर्म आवे छे; कोना परिणामथी?
आत्मानापोताना; ते परिणामने भावास्रव जाणवो. ते भावास्रव केवो छे? ‘जिणुत्तो
जिनेन्द्रेवीतराग सर्वज्ञदेवे कहेल छे. ‘कम्मासवणं परो होदि’ कर्मोनुं जे आगमन छे ते
‘पर’ छे. (अर्थात् ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्मोनुं आस्रवणआगमन ते पर एटले के बीजुं
१. परिणामना निमित्ते.
पुन्य पाप ए नव, इन मांहि, आवै कर्मसू आस्रव चाहि;
भावास्रव आतमपरिणाम, पुद्गल आवै द्रव्य सुनाम. २९.
सप्ततत्त्व-नवपदार्थ अधिकार [ ९७
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