Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 30 : Bhavashravanu Visheshapane Kathan.

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छे.) ‘पर’ शब्दनो शो अर्थ छे? ‘भावास्रवथी अन्य, भिन्न.’ भावास्रवना निमित्ते, तेल
चोपडेल पदार्थोने धूळ चोंटे छे तेम, जीवने द्रव्यास्रव थाय छे.
शंकाःखरेखर ‘आस्रवति येन कर्म’‘जेनाथी कर्मनो आस्रव थाय छे’ ए
पदथी ज द्रव्यास्रवनी वात आवी गई, तो पछी ‘कम्मासवणं परो होदि’कर्मास्रव बीजो
होय छे’ए पदथी द्रव्यास्रवनुं व्याख्यान शा माटे कर्युं? समाधानःतमारी शंका
योग्य नथी. केमके ‘जे परिणामथी; शुं थाय छे? कर्मनो आस्रव थाय छे;’ एवुं जे कथन
छे तेनाथी परिणामनुं सामर्थ्य बताव्युं छे, द्रव्यास्रवनुं व्याख्यान कर्युं नथी. आम, तात्पर्य
छे. २९.
हवे, भावास्रवनुं स्वरूप विशेषपणे कहे छेः
गाथा ३०
गाथार्थःपहेलाना (भावास्रवना) मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, योग अने
क्रोधादि कषाय एटला भेद जाणवा. तेमांथी मिथ्यात्व आदिना अनुक्रमे पांच, पांच, पंदर,
त्रण अने चार भेद छे.
कोऽर्थः ? भावास्रवादन्यो भिन्नो भावास्रवनिमित्तेन तैलमृक्षितानां धूलिसमागम इव द्रव्यास्रवो
भवतीति ननु ‘‘आस्रवति येन कर्म’’ तेनैव पदेन द्रव्यास्रवो लब्धः, पुनरपि कर्मास्रवणं
परो भवतीति द्रव्यास्रवव्याख्यानं किमर्थमिति यदुक्तं त्वया ? तन्न येन परिणामेन किं भवति
आस्रवति कर्म, तत्परिणामस्य सामर्थ्यं दर्शितं, न च द्रव्यास्रवव्याख्यानमिति भावार्थः ।।२९।।
अथ भावास्रवस्वरूपं विशेषेण कथयति :
मिच्छत्ताविरदपमादजोगकोधादओऽथ विण्णेया
पण पण पणदस तिय चदु कमसो भेदा दु पुव्वस्स ।।३०।।
मिथ्यात्वाविरतिप्रमादयोगक्रोधादयः अथ विज्ञेयाः
पञ्च पञ्च पञ्चदश त्रयः चत्वारः क्रमशः भेदाः तु पूर्वस्य ।।३०।।
मिथ्या अविरत औ परमाद, योग कषाय तणूं उन्माद;
पांचपांच पणदस तिय च्यारि, भावास्रवके भेद कहारि. ३०.
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