Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 100 of 272
PDF/HTML Page 112 of 284

 

background image
‘विण्णेया’ ए जाणवा जोईए. तेना केटला भेद छे? ‘‘पण पण पणदस तिय चदु कमसो
भेदा दु’’ मिथ्यात्व आदिना अनुक्रमे पांच, पांच, पंदर, त्रण अने चार भेद छे.
तेनो विस्तारः(‘‘एयंतबुद्धदरसी विवरीओ बह्म तावसो विणओ इन्दो विय संसइदो
मक्कडिओ चेव अण्णाणी ।। बौद्धमत एकान्तमिथ्यात्वी छे. याज्ञिक - ब्रह्म विपरीतमिथ्यात्वी छे,
तापस विनयमिथ्यात्वी छे, इन्द्राचार्य संशयमिथ्यात्वी छे अने मश्करी अज्ञानमिथ्यात्वी
छे.)’’
ए गाथामां कहेलां लक्षण प्रमाणे पांच प्रकारनुं मिथ्यात्व छे. हिंसा, असत्य,
चोरी, अब्रह्म अने परिग्रहनी आकांक्षारूप अविरति पण पांच प्रकारनी छे, अथवा
मनसहित पांच इन्द्रियनी प्रवृत्ति अने पृथ्वी आदि छकायनी विराधनाना भेदथी बार
प्रकारनी छे. ‘‘चार विकथा, चार कषाय, पांच इन्द्रिय, निद्रा एक अने स्नेह एक
रीते पंदर प्रमाद कह्या छे.’’गाथामां कह्या प्रमाणे पंदर प्रमाद छे. मन, वचन अने
कायाना व्यापारना भेदथी त्रण प्रकारनो योग छे अथवा विस्तारथी पंदर प्रकारनो योग
छे. क्रोध, मान, माया अने लोभना भेदथी कषाय चार छे; अथवा कषाय अने नोकषायना
भेदथी पचीस प्रकारना छे. आ बधा भेद कोना छे?
‘पुव्वस्स’ पहेली गाथामां कहेलां
भावास्रवना छे. ३०.
हवे, द्रव्यास्रवनुं स्वरूप कहे छेः
‘‘विण्णेया’’ विज्ञेया ज्ञातव्याः कतिभेदास्ते ? ‘‘पण पण पणदस तिय चदु कमसो भेदा
दु’’ पञ्चपञ्चपञ्चदशत्रिचतुर्भेदाः क्रमशो भवन्ति पुनः तथाहि ‘‘एयंतबुद्धदरसी विवरीओ
बह्म तावसो विणओ इन्दो विय संसइदो मक्कडिओ चेव अण्णाणी ’’ इति
गाथाकथितलक्षणं पञ्चविधं मिथ्यात्वम् हिंसानृतस्तेयाब्रह्मपरिग्रहाकाङ्क्षारूपेणाविरतिरपि
पञ्चविधा अथवा मनःसहितपञ्चेन्द्रियप्रवृत्तिपृथिव्यादिषट्कायविराधनाभेदेन द्वादशविधा
‘‘विकहा तहा कसाया इन्दियणिद्दा तहेव पणयो य चदु चदु पणमेगेगं हुंति पमादाहु
पण्णरस ’’ इति गाथाकथितक्रमेण पञ्चदश प्रमादाः मनोवचनकायव्यापारभेदेन त्रिविधो
योगः, विस्तरेण पञ्चदशभेदो वा क्रोधमानमायालोभभेदेन कषायाश्चत्वारः,
कषायनोकषायभेदेन पञ्चविंशतिविधा वा एते सर्वे भेदाः कस्य सम्बन्धिनः ‘‘पुव्वस्स’’
पूर्वसूत्रोदितभावास्रवस्येत्यर्थः ।।३०।।
अथ द्रव्यास्रवस्वरूपमुद्योतयति :
१. गोम्मटसार जीवकांड गाथा ३४.
१०० ]
बृहद्द्रव्यसंग्रह