Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 33 : Bandhana Prakruti Aadi Char Bhedonu Kathan.

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आत्माना प्रदेशोनो परस्पर प्रवेश ते द्रव्यबंध छे.
टीकाः‘बज्झदि कम्मं जेण दु चेदणभावेण भावबन्धो सो’ जे चेतनभावथी कर्म
बंधाय छे ते भावबंध छे. समस्त कर्मबंध नष्ट करवामां समर्थ, अखंड, एक प्रत्यक्ष
प्रतिभासमय, परम चैतन्यविलास जेनुं लक्षण छे एवा ज्ञानगुणना संबंधवाळी अथवा
अभेदनयथी अनंतज्ञानादि गुणना आधारभूत परमात्माना संबंधवाळी जे निर्मळ
अनुभूति, तेनाथी विरुद्ध मिथ्यात्व
रागादि परिणतिरूप अथवा अशुद्ध चेतनभावस्वरूप
जे परिणामथी ज्ञानावरणादि कर्म बंधाय छे, ते परिणाम भावबंध कहेवाय छे.
‘कम्मादपदेसाणं अण्णोण्णपवेसणं इदरो’ कर्म अने आत्माना प्रदेशोनो परस्पर प्रवेश थवो ते
बीजो अर्थात् द्रव्यबंध छे. ते ज भावबंधना निमित्तथी कर्मना प्रदेशोनो अने आत्माना
प्रदेशोनो, दूध अने पाणीनी जेम, एकबीजामां प्रवेश अर्थात् संश्लेष ते द्रव्यबंध छे. ३२.
हवे, गाथाना पूर्वार्धथी ते ज बंधना प्रकृतिबंध आदि चार भेदोनुं कथन करे छे
अने उत्तरार्धथी तेमना कारणनुं कथन करे छेः
व्याख्या‘‘बज्झदि कम्मं जेण दु चेदणभावेण भावबन्धो सो’’ बध्यते कर्म येन
चेतनभावेन स भावबन्धो भवति समस्तकर्मबन्धविध्वंसनसमर्थाखण्डैकप्रत्यक्षप्रतिभास-
मयपरमचैतन्यविलासलक्षणज्ञानगुणस्य, अभेदनयेनानन्तज्ञानादिगुणाधारभूतपरमात्मनो वा
संबन्धिनी या तु निर्मलानुभूतिस्तद्विपक्षभूतेन मिथ्यात्वरागादिपरिणतिरूपेण वाऽशुद्धचेतनभावेन
परिणामेन बध्यते ज्ञानावरणादि कर्म येन भावेन स भावबन्धो भण्यते
‘‘कम्मादपदेसाणं
अण्णोण्णपवेसणं इदरो’’ कर्मात्मप्रदेशानामन्योन्य प्रवेशनमितरः तेनैव भावबंधनिमित्तेन
कर्मप्रदेशानात्मप्रदेशानां च क्षीरनीरवदन्योन्यं प्रवेशनं संश्लेषो द्रव्यबन्ध इति ।।३२।।
अथ तस्यैव बन्धस्य गाथापूर्वार्धेन प्रकृतिबन्धादिभेदचतुष्टयं कथयति, उत्तरार्धेन तु
प्रकृतिबन्धादीनां कारणं चेति
पयडिट्ठिदिअणुभागप्पदेसभेदादु चदुविधो बन्धो
जोगा पयडिपदेसा ठिदिअणुभागा कसायदो होंति ।।३३।।
प्रकृति प्रदेश रु थिति अनुभाग, च्यारि भेद है बंध - विभाग;
योग करै परकति - परदेश, थिति - अनुभाग कषाय - असेस. ३३.
सप्ततत्त्व-नवपदार्थ अधिकार [ १०३