Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गाथा ३३
गाथार्थःप्रकृति, स्थिति, अनुभाग अने प्रदेशए भेदोथी बंध चार प्रकारनो
छे; योगथी प्रकृति अने प्रदेशबंध थाय छे अने कषायथी स्थिति अने अनुभागबंध थाय छे.
टीकाः‘पयडिट्ठिदिअणुभागप्पदेसभेदादु चदुविधो बन्धो’ प्रकृति, स्थिति, अनुभाग
अने प्रदेशना भेदथी बंध चार प्रकारनो छे, तेनो विस्तारःज्ञानावरणकर्मनो स्वभाव
शो छे? जेम पडदो देवना मुखने ढांकी दे छे, तेम ज्ञानावरणकर्म ज्ञानने ढांकी दे छे.
दर्शनावरण कर्मनो स्वभाव शो छे? राजाना दर्शनमां प्रतिहारी जेम रोके छे, तेम
दर्शनावरणकर्म दर्शनमां अटकायत करे छे. शाता अने अशाता वेदनीयनो स्वभाव शो छे?
मधथी लिप्त तलवारनी धार चाटवाथी जेम थोडुं सुख अने घणुं दुःख थाय छे, तेम
वेदनीयकर्म अल्प सुख अने अधिक दुःख उत्पन्न करे छे. मोहनीयनो स्वभाव शो छे?
मद्यपाननी जेम हेय
उपादेय पदार्थना विचारमां विकळता. आयुष्यकर्मनो स्वभाव शो छे?
बेडीनी पेठे एक गतिमांथी बीजी गतिमां जतां रोकवुं ते. नामकर्मनो स्वभाव शो छे?
चित्रकारनी पेठे अनेक प्रकारनां रूप करवां ते. गोत्रकर्मनो स्वभाव शो छे? नानां
- मोटां
वासण बनावनार कुंभारनी जेम उच्च के नीच गोत्र करवां ते. अंतरायकर्मनो स्वभाव
शो छे? भंडारीनी पेठे दानादि कार्यमां विघ्न करवुं ते. कह्युं छे केः
‘‘पट, प्रतिहार
द्वारपाळ, तलवार, मध, बेडी, चित्रकार, कुंभार अने भंडारी;ए आठेनो जेवो स्वभाव
प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशभेदात् तु चतुर्विधिः बन्धः
योगात् प्रकृतिप्रदेशौ स्थित्यनुभागौ कषायतः भवतः ।।३३।।
व्याख्या‘‘पयडिट्ठिदिअणुभागप्पदेसभेदादु चदुविधो बन्धो’’ प्रकृतिस्थित्यनुभाग-
प्रदेशभेदाच्चतुर्विधो बन्धो भवति तथाहिज्ञानावरणीयस्य कर्मणः का प्रकृतिः ?
देवतामुखवस्त्रमिव ज्ञानप्रच्छादनता दर्शनावरणीयस्य का प्रकृतिः ? राजदर्शनप्रतिषेधक-
प्रतीहारवरद्दर्शनप्रच्छादनता सातासातवेदनीयस्य का प्रकृतिः ? मधुलिप्तखङ्गधारास्वाद-
नवदल्पसुखबहुदुःखोत्पादकता मोहनीयस्स का प्रकृतिः ? मद्यपानबद्धेयोपादेय-
विचारविकलता आयुःकर्मणः का प्रकृतिः ? निगडवद्गत्यन्तरगमननिवारणता नामकर्मणः
का प्रकृतिः ? चित्रकारपुरुषवन्नानारूपकरणता गोत्रकर्मणः का प्रकृतिः ? गुरुलघुभाजन-
कारककुम्भकारवदुच्चनीचगोत्रकरणता अन्तरायकर्मणः का प्रकृतिः ? भाण्डागारिक-
वद्दानादिविघ्नकरणतेति तथाचोक्तं‘‘पडपडिहारसिमज्जाहलिचित्तकुलालभंडयारीणं जह
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बृहद्द्रव्यसंग्रह