Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration).

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छे, तेवो ज क्रमथी ज्ञानावरण आदि आठे कर्मोनो स्वभाव जाणवो.’’ ए आठ द्रष्टांतथी
प्रकृतिबंध जाणवो.
बकरी, गाय, भेंस आदिना दूधमां जेवी रीते बे पहोर वगेरे सुधी पोताना मधुर
रसमां रहेवानी काळनी मर्यादा छे तेने स्थिति कहेवाय छे, तेम जीवना प्रदेशोमां जेटला
काळ सुधी कर्मसंबंधरूपे स्थिति छे, तेटला काळने स्थितिबंध जाणवो.
जेवी रीते तेमनां ज दूधमां तारतम्यपणे रससंबंधी शक्तिविशेषने (चीकाश,
मीठाशने) अनुभाग कहेवामां आवे छे, तेवी रीते जीवना प्रदेशो उपर रहेला कर्मना
स्कंधोमां पण सुख के दुःख देवानी शक्तिविशेषने अनुभागबंध जाणवो. घातीकर्म साथे
संबंध राखनारी ते शक्ति वेल, काष्ठ, हाडकां अने पथ्थरना भेदथी चार प्रकारनी छे.
तेवी ज रीते अशुभ अघातीकर्म साथे संबंध राखनारी शक्ति नीम, काळीजीरी, विष तथा
हालाहलरूपना भेदथी चार प्रकारनी छे, अने शुभ अघातीकर्म साथे संबंध राखनारी
शक्ति गोळ, खांड, साकर अने अमृतरूप चार प्रकारनी छे.
आत्माना एकेक प्रदेश उपर सिद्धोना अनंतमा भागप्रमाण अने अभव्य जीवोनी
संख्याथी अनंतगुणा एवा अनंतानंत परमाणुओ प्रत्येक क्षणे बंध पामे छे, ते प्रदेशबंध छे.
हवे, बंधनुं कारण कहे छे. ‘जोगा पयडिपदेसा ठिदिअणुभागा कसायदो
हुंति योगथी प्रकृति अने प्रदेश तथा कषायथी स्थिति अने अनुभागबंध थाय छे.
एदेसिं भावा तहवि य कम्मा मुणेयव्वा ।।।।’’ इति दृष्टान्ताष्टकेन प्रकृतिबन्धो ज्ञातव्यः
अजागोमहिष्यादिदुग्धानां प्रहरद्वयादिस्वकीयमधुररसावस्थानपर्यन्तं यथा स्थितिर्भण्यते, तथा
जीवप्रदेशेष्वपि यावत्कालं कर्मसम्बन्धेन स्थितिस्तावत्कालं स्थितिबन्धो ज्ञातव्यः
यथा च
तेषामेव दुग्धानां तारतम्येन रसगतशक्तिविशेषोऽनुभागो भण्यते तथा जीवप्रदेश-
स्थितकर्मस्कन्धानामपि सुखदुःखदानसमर्थशक्तिविशेषोऽनुभागबन्धो विज्ञेयः
सा च
घातिकर्मसम्बंधिनी शक्तिर्लतादार्वस्थिपाषाणभेदेन चतुर्धा तथैवाशुभघातिकर्मसम्बंधिनी
निम्बकाञ्जीरविषहालाहलरूपेण, शुभाघातिकर्मसम्बन्धिनी पुनर्गुडखण्डशर्करामृतरूपेण चतुर्धा
भवति
एकैकात्मप्रदेशे सिद्धानन्तैकभागसंख्या अभव्यानंतगुणप्रमिता अनंतानंतपरमाणवः
प्रतिक्षणबंधमायांतीति प्रदेशबंधः इदानीं बंधकारणं कथ्यते ‘‘जोगा पयडिपदेसा
ठिदिअणुभागा कसायदो हुंति ’’ योगात्प्रकृतिप्रदेशौ, स्थित्यनुभागौ कषायतो भवत इति
१ ‘शक्तिभेदेन’ इति पाठान्तरं
सप्ततत्त्व-नवपदार्थ अधिकार [ १०५