Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 34 : Sanvar Padarthana Swaroopanu Kathan (Bhavsanvar Ane Dravyasanvaranu Kathan).

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गाथामां भावसंवर अने द्रव्यसंवरनुं स्वरूप कहे छेः
गाथा ३४
गाथार्थःआत्मानो जे परिणाम कर्मना आस्रवने रोकवामां कारण छे, तेने
भावसंवर कहे छे अने जे द्रव्यास्रवनुं रोकावुं ते द्रव्यसंवर छे.
टीकाः‘चेदणपरिणामो जो कम्मस्सासवणिरोहणे हेदू सो भावसंवरो खलु’ जे
चेतन परिणाम, केवो? कर्मोना आस्रवने रोकवामां कारण छे ते, खरेखर निश्चयथी
भावसंवर छे.
‘दव्वासवरोहणे अण्णो’ द्रव्यकर्मना आस्रवनो निरोध थतां बीजो
द्रव्यसंवर थाय छे. ते आ रीते छेःनिश्चयथी स्वतःसिद्ध होवाथी अन्य कारणनी
अपेक्षारहित, अविनश्वर होवाथी नित्य, परम प्रकाशरूप स्वभाव होवाथी स्वपरने
प्रकाशवामां समर्थ, अनादि
अनंत होवाथी आदि, मध्य अने अंतरहित, द्रष्ट, श्रुत
अने अनुभवेला भोगोनी आकांक्षारूप निदानबंधादि समस्त रागादि विभावमळथी
रहित होवाने लीधे अत्यंत निर्मळ, परमचैतन्यविलासरूप लक्षण होवाथी
चिद्उच्छलनथी (चैतन्यना ऊछळवाथी) भरपूर, स्वाभाविक परमानंद एक लक्षण
होवाथी परमसुखनी मूर्ति, आस्रवरहित सहज स्वभाव होवाथी सर्व कर्मोनो संवर
चेतनपरिणामः यः कर्म्मणः आस्रवनिरोधने हेतुः
सः भावसंवरः खलु द्रव्यास्रवरोधनः अन्यः ।।३४।।
व्याख्या‘‘चेदणपरिणामो जो कम्मस्सासवणिरोहणे हेदू सो भावसंवरो
खलु’’ चेतनपरिणामो यः, कथंभूतः ? कर्मास्रवनिरोधने हेतुः स भावसंवरो भवति खलु
निश्चयेन
‘‘दव्वासवरोहणे अण्णो’’ द्रव्यकर्मास्रवनिरोधने सत्यन्यो द्रव्यसंवर इति
तद्यथानिश्चयेन स्वतः सिद्धत्वात्परकारणनिरपेक्षः, स चैवाविनश्वरत्वान्नित्यः
परमोद्योतस्वभावत्वात्स्वपरप्रकाशनसमर्थः, अनाद्यनन्तत्वादादिमध्यान्तमुक्तः, दृष्ट-
श्रुतानुभूतभोगाकांक्षारूपनिदानबन्धादिसमस्तरागादिविभावमलरहितत्वादत्यन्तनिर्मलः, परम-
चैतन्यविलासलक्षणत्वादुच्छलननिर्भरः, स्वाभाविकपरमानन्दैकलक्षणत्वात्परमसुखमूर्तिः,
निरास्रवसहजस्वभावत्वात्सर्वकर्मसंवरहेतुरित्युक्तलक्षणः परमात्मा तत्स्वभावभावेनोत्पन्नो योऽसौ
भावसंवर अने द्रव्यसंवरनी शरूआत चतुर्थ गुणस्थानथी थाय छे; अने चौदमे गुणस्थाने आस्रवनो
सर्वथा अभाव थतां सर्वसंवर होय छे.
सप्ततत्त्व-नवपदार्थ अधिकार [ १०७