Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 35 : Sanvarana Karanona Bhedanu Kathan.

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अहीं, सारांश आ छेःजोके पूर्वोक्त शुद्धोपयोगलक्षणवाळुं क्षायोपशमिकज्ञान
मुक्तिनुं कारण थाय छे, तोपण ध्यान करनार पुरुषे ‘नित्य सकळ निरावरण, अखंड, एक,
सम्पूर्ण निर्मळ केवळज्ञान जेनुं लक्षण छे; एवुं परमात्मस्वरूप ते ज हुं छुं, खंडज्ञानरूप
नहि’
एवी भावना करवी.
ए रीते, संवर पदार्थना व्याख्यानमां नयविभाग जाणवो. ३४.
हवे, संवरनां कारणोना भेद कहे छे
एम एक भूमिका छे, ‘शेनाथी (कोनाथी)
संवर थाय छे?’ एवो प्रश्न पूछवामां आवतां प्रत्युत्तर आपे छेएम बीजी भूमिका
छे. ए बन्ने भूमिकाओ मनमां धारण करीने भगवान श्री नेमिचन्द्र आचार्य आ गाथा
कहे छेः
गाथा ३५
गाथार्थःव्रत, समिति, गुप्ति, धर्म, अनुप्रेक्षा, परिषहजय अने अनेक प्रकारनुं
चारित्रए बधाने भावसंवरना भेद जाणवा.
अयमत्रार्थःयद्यपि पूर्वोक्तं शुद्धोपयोगलक्षणं क्षायोपशमिकं ज्ञानं मुक्तिकारणं भवति
तथापि ध्यातृपुरुषेण यदेव नित्यसकलनिरावरणमखण्डैक सकलविमलकेवलज्ञानलक्षणं
परमात्मस्वरूपं तदेवाहं, न च खण्डज्ञानरूप, इति भावनीयम्
इति संवरतत्त्वव्याख्यानविषये
नयविभागो ज्ञातव्य इति ।।३४।।
अथ संवरकारणभेदान् कथयतीत्येका पातनिका, द्वितीया तु कैः कृत्वा संवरो
भवतीति पृष्टे प्रत्युत्तरं ददातीति पातनिकाद्वयं मनसि धृत्वा सूत्रमिदं प्रतिपादयति भगवान्
वदसमिदीगुत्तीओ धम्माणुपेहा परीसहजओ य
चारित्तं बहुभेया णायव्वा भावसंवरविसेसा ।।३५।।
व्रतसमितिगुप्तयः धर्म्मानुप्रेक्षाः परीषहजयः च
चारित्रं बहुभेदं ज्ञातव्याः भावसंवरविशेषाः ।।३५।।
व्रत अरु समिति गुप्ति दश धर्म, अनुप्रेक्षा चारित्र जु पर्म;
सहन परिषह, ए बहुभेद, संवरभाव भनैं जिनदेव. ३५.
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