Bruhad Dravya Sangrah-Gujarati (Devanagari transliteration). Gatha: 1 : Shastranu Nimitta Karan, Prayojan, Pariman.

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मङ्गलमित्युपलक्षणम् उक्तं च‘‘मंगलणिमित्तहेउं परिमाणं णाम तह य कत्तारं वागरिय
छप्पि पच्छा वक्खाणउ सत्थमायरिओ ।।’’ ‘‘वक्खाणउ’’ व्याख्यातु, स कः ? ‘‘आयरिओ’’
आचार्यः कं ? ‘‘सत्थं’’ शास्त्रं ‘‘पच्छा’’ पश्चात् किं कृत्वा पूर्वं ? ‘‘वागरिय’’
व्याकृत्य व्याख्याय कान् ? ‘‘छप्पि’’ षडप्यधिकारान् कथंभूतान् ? ‘‘मंगलणिमित्तहेउं
परिमाणं णाम तह य कत्तारं’’ मङ्गलं निमित्तं हेतुं परिमाणं नाम कर्तृसंज्ञामिति इति
गाथाकथितक्रमेण मङ्गलाद्यधिकारषटकमपि ज्ञातव्यम् गाथापूर्वार्धेन तु सम्बन्धाभिधेय-
प्रयोजनानि सूचितानि कथमिति चेत्विशुद्धज्ञानदर्शनस्वभावपरमात्मस्वरूपादिविवरणरूपो
वृत्तिग्रन्थो व्याख्यानम् व्याख्ययेयं तु तत्प्रतिपादकसूत्रम् इति व्याख्यानव्याख्येयसम्बन्धो
विज्ञेयः यदेव व्याख्येयसूत्रमुक्तं तदेवाभिधानं वाचकं प्रतिपादकं भण्यते, अनन्तज्ञानाद्यनन्त-
अहीं मंगल ए उपलक्षण-पद छे. कह्युं छे के
‘‘मंगलणिमित्तहेउं परिमाणं णाम तह य कत्तारं
वागरिय छप्पि पच्छा वक्खाणउ सत्थमायरिओ ।।’’
[अर्थःमंगलाचरण, (शास्त्र बनाववानुं) निमित्तकारण, प्रयोजन, परिमाण, नाम
अने कर्ताए छ अधिकारोनी व्याख्या करीने पछी आचार्ये शास्त्रनुं व्याख्यान करवुं.]
‘‘वक्खाणउ’’ व्याख्यान करवुं. कोणे? ‘‘आयरिओ’’ आचार्ये. कोनुं? ‘‘सत्थं’’ शास्त्रनुं.
‘‘पच्छा’’ पछी. पहेलां शुं करीने? ‘‘वागरिय’’ व्याख्या करीने. कोनी? ‘‘छप्पि’’
अधिकारोनी. क्या? ‘‘मङ्गलणिमित्तहेउं परिमाणं णाम तह य कत्तारं’’ मंगल, निमित्त, हेतु,
परिमाण, नाम अने कर्ता.ए रीते गाथामां कह्या प्रमाणे मंगल आदि छ अधिकार पण
जाणवा.
गाथाना पूर्वार्धथी संबंध, अभिधेय अने प्रयोजन सूचव्यां छे. केवी रीते? विशुद्ध
ज्ञानदर्शन जेनो स्वभाव छे एवा परमात्माना स्वरूपादिना विवरणरूप जे वृत्तिग्रंथ ते
व्याख्यान छे अने तेनुं प्रतिपादन करनार जे गाथासूत्र ते व्याख्येय छे. ए रीते व्याख्यान
व्याख्येयरूप संबंध जाणवो. जे व्याख्या करवा योग्य सूत्र छे ते ज अभिधानवाचक
प्रतिपादक कहेवाय छे; अनंतज्ञानादि अनंतगुणोना आधाररूप परमात्मा आदिनो स्वभाव
ते अभिधेय
वाच्यप्रतिपाद्य छे. ए रीते अभिधानअभिधेयनुं स्वरूप जाणवुं. व्यवहारथी
१. षट्खंडागम १-७, पंचास्तिकाय गाथा१, तात्पर्यवृत्ति टीका श्री जयसेनाचार्यकृत, तिलोयपण्णति
श्लोक १-७
षड्द्रव्य-पंचास्तिकाय अधिकार [ ७